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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ संघ श्रमणो की आचार संहिता को स्थिर करता है उस प्रकार वह गृहस्थों के लिए भी आदर्श विधि और विधान की स्थापना करता है। जैन परम्परा में श्रावक बनने के लिए दुर्व्यसनो के त्याग की आवश्यकता असंदिग्ध है। व्यसन सात कहेगये हैं - द्यूत खेलना, आखेट मदिरापान, चोरी करना, मांसाहार, परस्त्रीगमन और वेश्यागमन - किसी भी गुहस्थ को ये व्यसन विनाश को पहुंचा देते हैं। अतः इन सभी व्यसनो का त्याग किये बिना कोई प्राणी कभी अपना उद्धार नहीं कर सकता है। परिषह __ परिषह शब्द की अर्थात्मा का आधार सहज रूपेण सहन करने में निहित है । कर्मों की निर्जरा करने के लिए स्वतः सहन करने की प्रवृत्ति परीषह में व्याप्त है। परीषह सहन करने का अर्थ शरीर, इन्द्रिय और मन को कष्टायित करना नहीं है। इसका मूल लक्ष्य सन्मार्ग पर निर्विघ्न चलने के लिए संयम और तपादि धर्मा की साधना और आराधना करना सधा हुआ साधक परीषह से कभी धबराता नहीं और न व्याकुल ही होता है अपितु वह मात्र द्रष्टा बन कर शान्ति पूर्वक सहन करता है। परिषह बाईस कही गई हैं। इनके क्रम और संज्ञाओं में विभिन्न ग्रंथों में भिन्नता पाई जाती है। दर्शन और प्रज्ञा परीषहमार्ग से अच्यवन में सहायक होती है और शेषबीस परीषह कर्मो की निर्जरा में सहायता करती है। प्रतिक्रमण _इस शब्द के मूल मे क्रमण क्रिया महत्त्वपूर्ण है। इस से दो शब्द स्थिर होते हैं बाहर की और प्रहार करने के भाव उद्दीप्त होते हैं जब कि प्रतिक्रमण में यह प्रहार अन्तर्मुखी होता है। प्रमाद के कारण शुभ और शुद्ध संकल्प से विचलित होकर अशुभ और अनुव संकल्प मे चले जाने पर पुनः शुभ की और लौट आने के प्रयास - प्रयोग में प्रतिक्रमण का अभिप्रेत मुखर हो उठता है। साधक अपना आन्तरिक निरीक्षण करता है, और जब उसे यह अनुभव होता है कि यह परिवर्तन अथवा स्खलन हमारी मूर्छा और अज्ञानता के कारण हुआ है वह उसे सुधारता है, प्रायश्चित करता है ताकि उसे दुबारा आवृत न किया जाय। इस समग्र प्रक्रिया का नाम है प्रतिक्रमण । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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