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________________ I भगवती सूत्र में कर्मो को सूखे घास की उपमा दी गई है । जैसे सूखे घास को अग्नि क्षण-भर में जला डालती है वैसे ही तप रूपी अग्नि कर्मों को भस्म कर डालती है । चूर्णिकार जिनदासगणी महत्तर भी यही परिभाषा देते हैं 'तवो णाम तावयति अट्ठविंह कम्मगंठि नासेतिति वृत्तं भवइ ।' आठ प्रकार की कर्म-ग्रंथियों को तपाता है, नाश करता है, वह तप है । जैन धर्म में तप का बहुत बड़ा स्थान है। यह मोक्ष प्राप्ति के चार साधनों में से एक साधन माना गया है । फिर भी तप करना अनिवार्य नहीं है । एक व्यक्ति दो मास का तप ( ६० दिन का उपवास) कर सकता है । दूसरा व्यक्ति एक उपवास भी नहीं कर सकता । दूसरे व्यक्ति के लिए जैन धर्म में अनिवार्यता नहीं है कि उसे लम्बे उपवास करने ही चाहिए अन्यथा मुक्ति नहीं होगी। न तो लम्बे उपवासों की अनिवार्यता है और न एक-दो दिन के उपवास की भी । तप करने वालों के लिए भगवान ने विवेक दिया है कि अपनी शारीरिक शक्ति को तोलकर तप साधना में कदम उठाना चाहिए। दर्शन दिग्दर्शन बलं थामं च पेहाए, सद्धामारोग्य मप्पणो । खेत्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजुंजए ।। अपना शरीर बल, मन का बल, श्रद्धा, आरोग्य, क्षेत्र और समय आदि को समझ कर तप आदि धार्मिक प्रवृत्ति में अपने को जोड़ना चाहिए। तपस्या में शरीर - बल तो चाहिए ही, साथ में मन का बल भी होना चाहिए । शरीर-बल है और मन का बल नहीं है तो व्यक्ति तप करने में हिचकिचाएगा । शरीर का बल पूर्ण नहीं है, लेकिन मन की दृढ़ता का बल है तो वह साहस के साथ तत्पश्चर्या में अपने को लगा देगा। Jain Education International 2010_03 से जिस व्यक्ति को उपवास करने से वमन होता हो, भूख व्याकुलता बढ़ती हो, जी घबराता हो, पित्त का प्रकोप अधिक होता हो, मन में संक्लेश बढ़ता हो, मानसिक परिणामों में उतार-चढ़ाव आता हो, सहयोगियों को अनिच्छा सेवा देनी पड़ती हो, वैसी स्थिति में तप सोच-समझकर करना चाहिए। १६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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