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________________ स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ उदारचेता मनीषी श्री मोहनलालजी बांठिया के साथ मेरा बचपन से निकट का स्नेहपूर्ण संबंध था। उनके साथ रहकर मैंने हमेशा उनमें अपनत्वपूर्ण व्यवहार, स्नेह और शासन के प्रति अनुप्राणित रहने का दृढ़ संकल्प पाया। वे निश्चित स्वभाव के धनी और उदारचेता थे । उन्होंने अपने जीवन में अनेक कार्यकर्ताओं को तैयार किया । सबके हित चिंतन का ध्यान था। इसलिये वे सबके थे। उन्हें बेजोड़ ज्ञानवान कहूं या अतल मानस समुद्र की गहराई में पहुंचा हुआ मनस्वी । उन जैसा मित्र हृदय मेंने किसी श्रावक को नहीं देखा। वे दूसरों की पीड़ा को समझते थे । Jain Education International 2010_03 - श्रीचन्द चोरड़िया, न्यायतीर्थ कलकता वे महान थे। इतने बड़े, इतने समर्थ, इतने सामान्य होकर उन्हें गुमान नहीं था। वे कड़े भी बहुत थे तो नम्र भी बहुत थे। मैंने इनके साथ आगम- कोष-विभाजन का कार्य किया। ऊपर से नीचे तक, भीतर से बाहर तक, आदि से अन्त तक उन्हें परखा । सचमुच वह अंगूरी गुच्छा था। ऐसे उपकारी पुरूष को अन्तःकरण से नमन । ६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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