SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिधान राजेन्द्रकोश और उसके प्रणेता युगपुरुष श्री राजेन्द्रसूरि आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्रसूरि महाराज जैनशासनमें एक समर्थ पुरुष हुए हैं। उनका शताब्दीमहोत्सव मनाया जाता है, यह अति महत्त्वका एवं विद्वगणके लिये आनन्दका विषय है । जिस महापुरुषने अभिधानराजेन्द्र नामक महाकोशका या विश्वकोशका निर्माण करके जैन प्रजाके ऊपर ही नहीं, समग्र विद्वज्जगतके ऊपर महान् अनुग्रह किया है, और ऐसी महर्द्धिक कृतिका निर्माण करके उन्होंने सारे विद्वत्संसारको प्रभावित एवं चमत्कृत किया हैं, ऐसी प्रभावक व्यक्तिका शताब्दीप्रसंग समस्त विश्व के लिये आनन्दस्वरूप है । महति -महावीर-वर्धमानस्वामिके शासनमें अनेकानेक शासनप्रभावक युगपुरुष हो चुके हैंस्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी, स्थविर आर्य स्कन्दिल, श्री नागार्जुन स्थविर आदि श्रुतधरोंने जैन आगमों की वाचना-लेखन आदि द्वारा रक्षा की। श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, गंधर्ववादिवेताल शान्तिसूरि आदि अनुयोगघर स्थविरोंने जैन आगमोंको व्यवस्थित कर एकरूप बनाये । स्थविर श्री भद्रबाहुस्वामी, स्थविर आर्य गोविंद आदि प्रावचनिक स्थविरोंने आगमोंके ऊपर नियुक्तिरूप गाथाबद्ध व्याख्याग्रंथोकी रचना की । स्थविर आर्य कालकने आगमोंके बीजकरूप अर्थात् विषयानुक्रमणिकारूप गाथाबद्ध संग्रहणी - शास्त्रोंकी रचना की । श्री संघदासगणि क्षमाश्रमण, श्री जिनभद्रगणि श्री सिद्धसेन गणि क्षमाश्रमण आदि आगमिक आचार्योंने जैन आगमोंके ऊपर भाष्यलघुभाष्य -- महाभाष्य आदि प्रासादभूत गाथाबद्ध विशाल व्याख्याग्रन्थ लिखे । स्थविर अगस्त्यसिंह, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, जिनदास महत्तर, गोपालिक महत्तर शिष्य आदि स्थविरोने आगमोंके ऊपर अति विशद प्राकृत व्याख्याग्रन्थोंका निर्माण किया । याकिनीमहत्तरापुत्र आचार्य श्री हरिभद्र, श्री शीलांकाचार्य, वादिवेताल श्री शान्तिसूरि, नवाङ्गीवृत्तिकार श्री अभयदेवाचार्य, आचार्य श्री अभयदेव - क्षमाश्रमण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy