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________________ १८ नयचक्र में उद्धृत आगम- पाठों को समीक्षा १. 'दव्वत्तो' साइअं २. 'अणाइयं' 'खेत्तओ' साइयं' अणाइयं, साइअं अणाईयं, जया, साइयं, ३. आया भंते ! नाणे, अन्नाणे ? गोयमा ! आया सिय नाणे सिय अन्नाणे, नाणे पुण नियमं आया । आत्मन् — शब्द अशोक के पूर्वी शिलालेखों में अत्ता; पालि-ग्रन्थ सुत्तनिपात में अत्ताशब्द ही ध्वनिपरिवर्तन के नियमों के अनुसार परवर्तीकाल में आता बनता है और भी बाद के परवर्ती काल अर्थात् महाराष्ट्री प्राकृत काल में मध्यवर्ती त का लोप होकर य बनता है अर्थात् आता का आया होता है । गिरनार - अत्पा, अप्पा आगम के अत्ता, आता, अप्पा, आया चारों शब्दों का समय अलग-अलग है, अप्पा बाद में आया है । ४. कइविहे णं भंते ! परमाणुपोग्गले पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे परमाणुपोग्गले पण्णत्ते । तं जहा - दव्वपरमाणु, खेत्तपरमाणु कालपरमाणु, भावपरमाणु । ५. सुत्ता अमुणी मुणिणो सययं जागरंति । ६ इ: स्वप्नादौ १.४६, स्वप्न इत्येवमादिषु आदेरस्य इत्वं भवति, सिविणो, सिमिणो, आर्षे उकारोप- सुमिणो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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