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________________ २१० डा. जयकुमार जैन यतः वादिराज ने पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति' तथा यशोधरचरित के प्रारम्भ में अपना नाम वादिराज ही कहा है, अतः जब तक अन्य कोई प्रबल प्रमाण नहीं मिलता है, तब तक हमें वादिराज ही वास्तविक नाम स्वीकार करना चाहिए। वादिराजसूरि के समय दक्षिण भारत में चालुक्य नरेश जयसिंह का शासन था। इनके राज्यकाल की सीमायें १०१६-१०४२ ई० मानी जाती हैं। महाकवि विल्हण ने चालक्य वंश की उत्पत्ति दैत्यों के नाश के लिए ब्रह्मा की चलका ( चल्ल ) से बताई है। उन्होंने चालक्य वंश की परम्परा का प्रारम्भ हारीत से करते हुए उनकी वंशावली का निर्देश इस प्रकार किया है-मानव्य> तैलप> सत्याश्रय> जयसिंहदेव । जयसिंहदेव के उत्तराधिकारी आहवमल्ल द्वारा अपनी राजधानी कल्याणनगर बसाकर उसे बनाने का उल्लेख विक्रमांकदेवचरित में किया गया है। जिससे स्पष्ट होता है कि उनके पूर्व शासक की राजधानी अन्यत्र थी। पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति में महाराज जयसिंह की राजधानी "कट्टगातीरभूमौ" कहा गया है। किन्तु दक्षिण में कट्टगा नामक कोई नदी नहीं है । हाँ, बादामी से लगभग १८-१९ किमी० दूर एक कट्टगेरी नामक स्थान जरूर है जो कोई प्राचीन नगर जान पड़ता है। ऐसा लगता है कि प्रमादवश "कट्टगेरीतिभूमौ" के स्थान पर हस्तलिखित प्रति में "कट्टगातीरभूमौ" लिखा गया है। कट्टगेरी नामक उक्त स्थान पर चालुक्य विक्रमादित्य (द्वितीय) का एक कन्नड़ी शिलालेख भी मिला है, जिससे स्पष्ट है कि चालुक्य राजाओं का कट्टगेरी स्थान से सम्बन्ध रहा है। यही कट्टगेरी जयसिंहदेव की राजधानी होनी चाहिए। पार्श्वनाथचरित के अतिरिक्त न्यायविनिश्चयविवरण एवं यशोधरचरित की रचना भी जयसिंह की राजधानी में ही सम्पन्न हुई थी। न्यायविनिश्चयविवरण' में तो इसका उल्लेख किया ही गया है, यशोधरचरित में भी जयसिंह पद का प्रयोग करके बड़े कौशल के साथ इसकी सूचना दी गई है। यथा "व्यातन्वजयसिंहतां रणमुखे दीर्घ दधौ धारिणीम् ।" __ "रणमुखजयसिंहो राज्यलक्ष्मी बभार ।" १. पार्श्वनाथचरित प्रशस्तिपद्य ४ (वादिराजेन कथा निबद्धा) २. यशोधरचरित १/६ (तन श्रीवादिराजेन) ३. द्रष्टव्य-कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश की वंशावली----फादर हराश एवं श्री गुजर, विक्रमांक देवचरित भाग २ (हिन्द वि० वि० प्रकाशन ) परिशिष्ट तथा जैन शिलालेख संग्रह भाग ३ की डा० चौधरी द्वारा लिखित प्रस्तावना, पृ० ८८ ४. विक्रमांकदेवचरित १५८-७९ ५. वही २/१ ६. पार्श्वनाथचरित प्रशस्तिपद्य ५ न्यायविनिश्चय विवरण प्रशस्तिपद्य ५ ८. यशोधरचरित ३/८३ एवं ४/७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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