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________________ लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण ९५ नील लेश्या वाले प्राणी में नील रंग की प्रधानता अधिक होती है । वह ईर्ष्यालु, असहिष्णु, आग्रही, अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, द्वेष बुद्धि से युक्त, रसलोलुप, सुखेच्छु होता है । कापोत लेश्या वाले प्राणी में कापोत वर्ण की प्रधानता अधिक होती है । उसमें वाणी की वक्रता, आचरण का दुहरापन, अनेक दोषों को छुपाने की मनोवृत्ति होती है । मखौल करना, कटु-अप्रिय वचन बोलना, चोरी करना, मात्सर्यभाव रखना उसके विशेष लक्षण होते हैं । तैजस लेश्या के प्राणी में लाल रंग की प्रधानता होती है । लाल रंग प्रधान व्यक्ति विनम्र, धैर्यवान, अचपल, आकांक्षा-रहित, जितेन्द्रिय, पापभीरु होता है । उसमें मुक्ति की गवेषणा होती है, पर - हितैषी होता है । पद्म लेश्या में पीला रंग प्रधान होता है । क्रोध, मान, माया, लोभ की मनोवृत्ति अत्यन्त अल्प हो जाती है । उसमें चित्त की प्रसन्नता, आत्म-नियन्त्रण, अल्पभाषिता और जितेन्द्रियता का विकास होता है । शुक्ल लेश्या श्वेत प्रधान होती है । शुक्ल लेश्या वाला प्राणी जितेन्द्रिय, प्रशान्तचित्त वाला होता है । उसके मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है । " रंग को न केवल सैद्धान्तिक दृष्टि से व्याख्यायित किया गया है अपितु आज विज्ञान की सभी शाखा प्रशाखाओं में रंग के महत्त्व पर प्रकाश डाला जा रहा है। भौतिकवादियों, रहस्यवादियों, मंत्र - शास्त्रियों, शरीर-शास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग रूप से रंग का अध्ययन कर यह सिद्ध किया है कि यह चेतना के सभी स्तरों पर जीवन में प्रवेश करता है । रंग को जीवन का पर्याय माना गया है । वैज्ञानिकों ने स्पेक्ट्रम के माध्यम से सात रंगों की व्याख्या की है। उनके अनुसार प्रकाश तरंग के रूप में होता है और प्रकाश का रंग उसके तरंग दैर्ध्य ( Wave length ) पर आधारित है। तरंग दैर्ध्य और कम्पन की आवृत्ति (frequency) परस्पर में न्यस्त प्रमाण ( inverse proportion ) से सम्बन्धित हैं । यानि तरंग दैर्ध्य के बढ़ने के साथ कम्पन की आवृत्ति कम होती है और उसके घटने के साथ बढ़ती है। सूर्य का प्रकाश त्रिपार्श्व कांच ( prism ) में गुजरने पर प्रकाश विक्षेपण के कारण सात रंगों में विभक्त दिखाई देता है । उस रंग पंक्ति को वर्णपट - स्पेक्ट्रम ( Spectrum ) कहते हैं । स्पेक्ट्रम के सात रंग हैं-लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी और बैगनी । इसमें लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है, बैगनी ( violet ) की सबसे कम । दूसरे शब्दों में लाल रंग की कम्पन आवृत्ति सबसे कम और बैगनी रंग की सबसे अधिक होती है । दृश्य प्रकाश में जो विभिन्न रंग दिखाई देते हैं, वे विभिन्न कम्पनों की आवृत्ति या तरंग दैर्ध्य के आधार पर होते हैं । रंग और प्रकाश दो नहीं । प्रकाश का ४९वाँ प्रकम्पन रंग है प्रकाश का महासागर जो सूर्य से निकलता है वह शक्ति और ऊर्जा का महास्रोत होता है । १. उत्तराध्ययन ३४/२१-३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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