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________________ श्री. अगरचंद नाहटा पाटि १६ तिणरै शिष्य ८ तिहारा नाम श्री महेन्द्रसूरि १ तिणथी मथुरावालगच्छ, श्री शालिगसूरि-श्री पुरवालगच्छ, श्री देवेन्द्रसूरि-खंडेलवालगच्छ, श्री आदित्यसूरिसोझितवालगच्छ, श्री हरिभद्रसूरि-मंडोवरागच्छ, श्री विमलसूरि-पत्तनवालगच्छ, श्री वर्द्धमानसूरि-भरवछेवालगच्छ ७ श्री मूल पाटे श्री (१७) जसोदेवसूरि पाटि १७ संवत ३२९ वर्षे वैशाख सुदि ५ प्रल्हादि प्रतिबोधिता 'श्री पलिवालगच्छ थापना' संवत् ३९० (?) स्वर्ग (१८) श्री नन्नसूरि पाटि १८ संवत ३५६ स्वर्ग (१९) श्री उजोअणसूरि पाट १९ संवत ४०० स्वर्ग (२०) श्री महेश्वरसूरि पाटि २० संवत ४२४ स्वर्ग (२१) श्री अभयदेवसूरि पाटि २१ संवत ४५० वर्षे स्वर्ग (२२) श्री आमदेवसूरि पाटि २२ संवत ४५६ स्वर्ग (२३) श्री शांतिसूरि पाटि २३ संवत ४५( ९ ? )५ स्वर्ग (२४) श्री जस्योदेवसूरि पाटि २४ संवत ५३४ स्वर्ग (२५) श्री नन्नसूरि पाटि २५ संवत ५७० स्वर्ग (२६) श्री उजोअणसूरि पाटि २६ संवत ६१६ स्वर्ग (२७) श्री महेश्वरसूरि पाटि २७ संवत ६४० स्वर्ग (२८) श्री अभयदेवसूरि पाटि २८ संवत ६८१ स्वर्ग (२९) श्री आमदेवसूरि पाटि २९ संवत ७३२ स्वर्ग (३०) श्री शांतिसूरि पाटि ३० संवत ७६८ स्वर्ग । (३१) श्री जस्योदेवसूरि पाटि ३१ संवत ७९५ स्वर्ग (३२) श्री नन्नसूरि पाटि ३२ संवत ८३१ स्वर्ग (३३) श्री उजोयणसूरि पाटि ३३ संवत ८७२ स्वर्ग (३४) श्री महेश्वरसूरि पाटि ३४ संवत ९२१ स्वर्ग में जिनदत्तसूरि और उपकेश गच्छ में भी कई नाम रूढ पाये जाते हैं। उपकेशगच्छ के रूढ़ नाम यथाः१ रत्नप्रभ, २ यक्षदेव, ३ कक्क, ४ देवगुप्त, ५ सिद्ध इनमें से ३५ पाट के बाद रत्नप्रभ और यक्षदेव नाम निकाल दिये गये। शताब्दि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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