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________________ पंजाब के जन भंडारों का महत्त्व भंडार से जो और जितने ग्रन्थ चाहें लेजाओ" । दूसरी ओर ऐसे श्रावक थे जो दूसरे को ग्रन्थ दिखाते भी नहीं थे । उन को पढ़ने के लिये देने का तो कहना ही क्या ?। सन् १८८० में गुजरांवाला जैन मन्दिर का भंडार ला० कर्मचंद भाबडा की देखरेख में था। जब पं० काशीनाथ कुण्टे उन के पास गये तो उन्हों ने पुस्तक दिखाने से साफ़ इनकार कर दिया और कहा कि ये सब पुस्तक जैन धर्म सम्बन्धी हैं और इन को साधु और यतियों के सिवाय और कोई व्यक्ति नहीं देख सकता, चाहे वह श्रावक ही क्यों न हो ? पीछे सरकारी अफसरों के अनुरोध से उन्हों ने इस शर्त पर पुस्तक दिखाने स्वीकार किये कि वे पुस्तक को अपने हाथ में पकड़े रहेंगे और पण्डितजी दूर से इसे पढ़ लेंवें, परंतु हाथ न लगावें" । लेकिन अब अत्यन्त आवश्यक है कि इन भंडारों का समुचित प्रबन्ध किया जाय जिस से न केवल ये चिरकाल तक सुरक्षित रहें प्रत्युत इन का ठीक उपयोग भी हो । पंजाब यूनिवर्सिटी के वाइस चान्सलर स्व० डा० ए० सी० वूल्नर पंजाब के जैन भंडारों की महत्ता को भली प्रकार समझते थे । उन्हों ने लेखक को सन् १९१७, १९२३ और १९३० में कई जगह जैन भंडार देखने के लिये भेजा । पहली दो बार कुछ सफलता न हुई । तीसरी बार अंबाला शहर भंडार का निरीक्षण किया गया जिस के परिणाम का दिग्दर्शन इस लेख से हो रहा है । कुछ समय हुआ श्री आत्मानंद जैन महासभा-पंजाब की प्रार्थना पर सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढी ने रु. १०००) पंजाब यूनिवर्सिटी में भेजा ताकि पंजाब के जैन भंडारों का निरीक्षण किया जाय । अब यह काम चालु हो गया है और इस की रिपोर्ट शीघ्र ही प्रकाशित होगी। डा. वुल्नर की इच्छा थी कि जैन सभा पंजाब के लाहौर जैसे किसी विद्यास्थान में एक केन्द्रीय जैन भंडार की स्थापना करे । 10 “One of them (Yatis) even invited me to his house and shewed me his books there. He gave me permission to take away what I wanted, and asked in exchange nothing, but a railway-guide-a request which I readily granted." Dr. G. Buhler's letter published in Collection and Preservation of Ancient Sanskrit Literature by A. E. Gough, Calcutta. 1.878, p. 51. ___11 Kashi Nath Kunte's Report on the Compilation of the Catalogue of Sanskrit manuscripts for the quarter ending 31st, December, 1880. Lahore, p. 2. •: १६८:. [ श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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