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________________ श्री. बनारसीदास जैन प्रत्युत चित्रकला में भी इस ने असीम कौशल दिखाया है। चिरकाल से पर्युषण पर्व में कल्पसूत्र बांचने तथा सुनने की प्रथा चली आती हैं । श्रावक लोग इस सूत्र की प्रतियां लिखवाकर मुनिराजों को भेंट किया करते थे । धनाढ्य श्रावक इन को सुनहरी अक्षरों में लिखवाते और उन में चित्र भी बनवाते थे। ऐसी कइ प्रतियां पंजाब के भंडारों में विद्यमान हैं । जैसे( क ) कल्पसूत्र-(जीरा भंडार, नं० ११७)। यह पुस्तक प्रसिद्ध श्रावक पर्वत और डूंगर ने सं० १५६५ में लिखवाई जिस में ३० चित्र हैं । दीप्यदागमगच्छे श्रीजयानन्दगुरोः क्रमे । श्रीमद्विवेकरत्नाख्यसूरीणामुपदेशतः ॥ १० ॥ ताभ्यां पर्वतडूंगरनामभ्यां कल्पपुस्तिकाः सर्वाः । श्रीज्ञानभक्तिवृद्धयै जयन्तु ता लेखिताः सुचिरम् ॥११॥ विक्रमसमयातीते वर्षे बाणर्तुतिथिमिते तपसि । सितपञ्चम्यां शुक्रे लेखिताः श्रीकल्पपुस्तिकाः सकलाः ॥ १२ ॥ पर्वतडंगर के पूर्वजों के वर्णन के लिये देखिये मोहनलाल देशाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ५८०-८२, ६२४, ७५९ । (ख) जीरा भंडार की नं० ५२९ कल्पसूत्रप्रति भी सचित्र है जो सं० १४७३ की लिखी हुई है। सचित्र क्षमापण अथवा विज्ञप्तिपत्रों के लिये देखिये श्री मुनि जिनविजयद्वारा संपादित विज्ञप्तित्रिवेणिः, भावनगर सन् १९१६ । प्रस्तावना पृ० २, ३ । इन के अतिरिक्त देवविमान तथा नरकों के चित्र और जम्बूद्वीप के नकशे तथा ज्योतिष संबन्धी रेखाचित्र भी मिलते हैं । जैनकला के इतिहास के लिये यह आवश्यक सामग्री है । पूर्वोक्त कथन में पंजाब के जैन भंडारों के महत्त्व का दिग्दर्शन कराया गया है। कुछ काल पहले ये भंडार कैसे हाथों में थे इस का हाल भी सुनिये । एक ओर तो इन के संरक्षक ऐसे यति लोग थे जो केवल रेलवे गाइड की प्रति लेकर कह देते थे कि हमारे शताब्दि ग्रंथ] .: १६७:. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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