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________________ पंजाब के जैन भंडारों का महत्त्व और ग्रंथ सब मथन करि भाषा कहों बषान । काढा औषध चूर्ण गुटिका करइ प्रगट मुनि मान ॥ १० ॥ भट्टार्क जिनचंद गुरु एक गच्छ कों सिरदार । खरतरगछ महिमानिलो सब जग को सुषकार ॥ ११ ॥ जाको गछवासी प्रगट वाचक सुमन सुमेरु । ताको सिष्य मुनि मानजी वासी बीकानेर ॥ १२ ॥ कियौ ग्रंथ लाहौर में उपजी बुद्ध की वृद्ध । जो नर राषइ कंठ मै सो होवइ प्रसिद्ध ॥ १३ ॥ कवि के बीकानेरवासी होने के कारण कहीं २ मारवाड़ी प्रयोग दिखाई देते हैं। (ग ) दत्तकृत बारहखडी ( नकोदर भंडार नं० ९४ ) आदि-संवत सत्रह सैं साठे समै जेठ वदी तिथि दूज । रवि ऋषि स्वाति बारांषडी करी कालिका पूज ॥१॥ अंत--जंबूदीप जाको कहै गंगाजमुना परवाह । भरतषेत वलमंड भू नरपत नवरंग साह ॥ १ ॥ हरियाणे मै मंडल दिल्ली तषत बडा गुलजारी । चारि सहर में नगर लालपुर जित है रहन हमारी ॥ दयारामजी करी दास है गौड जन्म दुज धारी । दानो वंस दत्त की रचना पनिया (ग) ? परि बलिहारी ॥ इति दत्तकृत बाराषडी संपूर्ण । (घ ) श्री सूरतकृत जैन बारापडी ( नकोदर भंडार नं० १३२ ) । लिपिकाल सं० १८१५ । अंत-बारापडी हित सों कही नहीं गनियन की रीस । दोहै तो चालीस है छंद कहै बत्तीस ।। ७८ ॥ हिन्दी के हस्तलिखित पुस्तकों के विवरण में इन बारहखडियों का उल्लेख नहीं, परंतु दो और का है जो ये हैं .:१६४:. [श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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