SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन समाजमें शिक्षा और दिक्षा का स्थान देश का, किसी जाति का और किसी भी धर्म का अस्तित्व उसके ज्ञान पर ही है । यदि समय उसके विपरित हुआ तो उसका रक्षक उस समय परमात्मा ही है। मारत देश आज तक अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा किसके बल पर कर पाया है ? क्या ? आप ने कभी इसे सोचा भी है ? मुसलमान धर्म जिस के एक ही झोंके से तुर्किस्तान, फारस, अफगानिस्तान, मिश्र, पुर्तगाल और अनेक देश मुसलिम रंग में रंग गये, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण आफ्रिका श्रादि अपने अस्तित्व को मिटा कर यूरोपी बन गये किन्तु भारत आज एक हजार वर्षों से यदि अपनी संस्कृति की, धर्म की, रक्षा कर पाया है तो वह कौन-सा बल है ? हमें तो स्पष्ट कहना पड़ेगा कि वह बल हमारे ज्ञान का है, जो हमें अपने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि से प्राप्त हुआ है । यदि इन से हम आज विमुख होते हैं तो यह मानी हुई बात है कि हमारा अस्तित्व, नामोनिशान कुछ ही दिनों बाद न मिल पायगा । इधर कुछ दिनों से भारत में राष्ट्रीयता की नई लहर उठी है और सारी जातियाँ सारे समाज जग कर खड़े हो गये हैं । ऊंघती हुई जैन जाति ने भी अपनी नींद को त्याग दिया है । उसकी निकट निद्रा में शंखनाद करके जगाने के लिये कुछ महात्माओं ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है । यदि सच पूछा जाय तो इस जागृति का प्रारंभ न्यायाम्भो. निधि जैनाचार्य श्री १००८ श्री श्रीमद् विजयानन्दमूरीश्वरजी महाराज प्रसिद्धनाम आत्मारामजी से ही हुआ है । आप ने समाज की दशा को देखकर यह खूब विचार लिया था कि यदि यही दशा रही तो कुछ दिनों बाद न जाने क्या से क्या हो जाय ? फलतः समाज की जागृति के लिये शिक्षाप्रचार, संगठन आदि कार्यों के लिये समाज का पथ प्रदर्शन किया और उनके द्वारा संचालित कार्य उनके कुछ प्रधान शिष्योंद्वारा आज भी आगे बढ़ाया जा रहा है । उनके पट्टयर कलिकाल कल्पतरु अज्ञानतिमिरतरणी जैनाचार्य श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजजी साहेब तथा उनके शिष्यरत्न प्रखरशिक्षाप्रचारक मरुधरोद्धारक आध्यायजी श्री ललितविजयजी महाराज आदि इस कार्य में तनमन से जुड़े हुए हैं। फलतः बंबई में श्री महावीर जैन विद्यालय, पंजाब में श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल, वरकाणा ( मारवाड़ ) में श्री पार्श्वनाथ जैन महाविद्यालय और उम्मेदपुर ( मारवाड) में श्री पार्श्वनाथ जैन उम्मेद बालाश्रम आदि अनेक सितारे चमक रहे है । - इधर कुछ दिनों से जैन समाज में शिक्षा और दीक्षा का प्रश्न छिड़ा हुआ है। कुछ महात्मागग केवल इसी बात पर तुले हुये हैं कि हमें शिक्षा से कोई ताल्लुक नहीं, [ श्री आत्मारामजी ७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy