SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पेनसमाजका सानासान साफ764 ले० अचलदास लक्ष्मीचंदजी जैन " वीर" मानव जाति अपने प्रारंभिक काल से आज तक अनेक उत्थान और पतन, भले और बुरे, ऊँच और नीच को देखती हुई आ रही हैं । उस ने इन सब से बहुत कुछ सिखा है, और अपनी परवत्तियों के लिये अपने सम्पूर्ण अनुभवों को छोड़ती हुई गई है। मानवजाति के आरंभ से सर्वदा से कुछ गड़बड़ी रही है और धीरे धीरे अपने महात्माओंद्वारा विस्तृत होकर आगे बढ़ी हैं। जैन धर्मानुसार इस चौविसी के प्रारंभ से जब भगवान ऋषभदेव उत्पन्न हुए थे, लोग अज्ञान गर्त में पड़े अपने भाग्य को कोस रहे थे। उस समय उन्हों ने मानव जाति को असि, मसि और कृषि का उपदेश देकर स्वावलंबी बनाया । इस स्वावलंबन के अंतर में उन्हों ने इस जाति को अपना और पराये का मोह छोड़ कर परोपकार, अहिंसा, इन्द्रियसंयम आदि का भी उपदेश दिया था और उसके बाद स्वयं इस का एक ऊँच्च आदर्श छोड़कर परमधामगामी हुये थे। पहिली बात उनके द्वारा संचालित ज्ञान और दूसरी दीक्षा या त्याग था । शास्त्रकारों ने कहा भी है प्रथमं जानाति पश्चात् प्रयतते. अर्थात् पहले जानो और उसके बाद अपने दुःखों से अपनी भूलों से और अपने कर्मों के बन्धन से छुटने की कोशिश करो। मोक्षमार्ग के लिये सर्व प्रथम बात जैन धर्म में सम्यग्दर्शन का बतलाया है, अर्थात् मोक्षप्राप्ति का प्रथम सोपान सम्यगदर्शन या धर्म के तत्वों का पूर्ण रूप से ज्ञान ही है । इस दृष्टि से अगर हम प्रारंभ से अंत तक निरपेक्ष भाव से देखें तो हमें मानना पड़ेगा कि अपने अस्तित्व के लिये, धर्म की रक्षा के लिये और संमार में सुखप्राप्ति के लिये यहाँ तक कि मोक्षप्राप्ति के लिये भी शिक्षा ही प्रथम साधन है। प्रारंभ से आज तक के संसार के इतिहास उठा कर देखिये, आप इस बात को निर्विवाद रूप से समझ जायेंगे कि शिक्षा का मनुष्य जीवन में क्या महत्त्व है। किसी शताब्दि मंथ ] . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy