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________________ अंबालाशहर में देवस्मारक संध्यायें (ले० श्री ज्ञानदास जैन M. Sc., LL. B. ) विद्यया सुखमश्नुते । सा विद्या या विमुक्तये । लार्ड कर्जन ने एक बार कहा था 'यह जैन जाति भारत के आधे व्यापार की मालिक है। इसके पास धन की प्रचुरता है। ये लोग अच्छे देश तथा राजभक्त हैं।" ठीक है यह सब ठीक है। परन्तु यह मानना होगा कि सब प्रकार के सांसारिक सुखों को भोगनेवाली इस जाति में एक बड़ी भारी खामी है-वह है विद्या की कमी। __ श्रीमद्विजयानंदसूरि महाराज ने १९ वीं शताब्दि में अवतार धारण किया। उन्हों ने जैनों के धार्मिक संस्कारों को प्रौढ़ बनाने के लिये अपनी सारी शक्ति लगाई । संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों का अनुशीलन कर के उनका निचोड़ हिंदी में लोगों की बोलचाल की भाषा में उपस्थित किया, जिस से इस समाज की धार्मिक भावनायें उत्तेजित हों और धर्म की उन्नति हो। उन्हों ने एक सुविज्ञ वैद्य की भांति जैनसमाज की नाड़ी देखी । रोग का अनुभव किया और ओषधि भी निश्चित कर दी। उनके एक ही वाक्य में सारा निदान गर्भित है:" जैन मंदिरों की आवश्यकता है सही परन्तु उन मंदिरों में पूजा करनेवाले भगवान के पूजारी उत्पन्न करने के लिये सरस्वती मंदिरों की भी नितांत आवश्यकता है।" पंजाब की दशा विशेषतया शोचनीय थी। उन्हों ने पंजाब की रक्षा का भार अपने शिष्यरत्न श्रीवल्लभविजयजी को सौंपा । निर्वाचन ठीक ही हुआ । श्रीवल्लभविजयजी ने भी गुरुवाक्य को लक्ष्य में रखते हुए अपनी सारी शक्ति का व्यय विद्याप्रचार में लगा दिया । आप ने अपने विहार में यथा अवसर अपने भक्तों का ध्यान विद्याप्रचार की ओर आकर्षित किया और अब भी कर रहे हैं। आप ने सन् १९०० में अंबाला शहर में चातुर्मास किया। अंबाला शहर में जैनों की ख़ासी वस्ती है। श्वेतांबर श्वेतांबर जैनों के भी काफी घर हैं परन्तु उनके बालकों की शिक्षा उस समय कोई प्रबंध न था । आप के उपदेश से एक पाठशाला खोली गई। विद्याप्रचार का यह बीज अंकुरित हुआ। उनके आशीर्वचनों का यह फल है कि अब वह एक फूलाफला वृक्ष बनकर 'श्री आत्मानंद जैन हाईस्कूल' के रूप में दृष्टिगोचर [श्री आत्मारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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