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________________ नहटौरका ध्यान रखते थे । उन्होंने ही पण्डितजीको अध्ययन के लिए प्रेरित किया, बाहर भिजवाया । इनके वंशजोंने ही नहटौरमें जैन कालेज खुलवाया। वे प्रखर समाज-सुधारक तथा समाजसेवी थे । वे गुप्तदानी भी थे और लोगोंको आगे बढ़ानेमें मार्गदर्शक सहयोग देते थे । नहटौरकी ही एक अप्रतिम विभूति पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री हैं जिन्होंने अपने अध्ययन-अध्यापन, साहित्य निर्माण तथा मार्गदर्शक गुणोंके कारण इस क्षेत्रका नाम प्रशस्त किया है। वस्तुतः बिजनौर जिलेके दो परिवारोंने मणिकांचन - संयोगकी उक्ति चरितार्थ की है । ये हैं - साहू परिवार और लाला मुसद्दीलालका परिवार । एक परिवार धनकुबेर था, तो दूसरा विद्यापति प्रमाणित हुआ । एक ही क्षेत्रमें लक्ष्मी और सरस्वतीका यह संयोग विरल ही देखा जाता है । इनका जीवन इसी ग्रन्थमें अन्यत्र दिया गया है । पंडितजी समाज के लिए सूर्यसमप्रकाशस्तम्भ तथा सुमेरुसम उत्तुङ्गत्ता प्रदान कर रहे हैं । रुहेलखण्ड क्ष ेत्रने अखिल भारतीय जैन संस्थाओं के संस्थापन और अभिवर्धनमें काफी योगदान किया है। मुरादाबाद पण्डित चुन्नीलालजी आदि महासभाके संस्थापकों (१८९१ ) में हैं । दिगम्बर जैन परिषद्का सर्व प्रथम अधिवेशन भी १९२४ में साहू जुगमन्दिरदास की अध्यक्षतामें नजीबाबादमें हुआ था । यह एक सुधारवादी संस्था रही है और इसने समाजकी अनेक कुरीतियोंको दूर करने में अग्रणी कार्य किया है । faraौर जिलेकी समस्त विभूतियाँ ( इनमें लेखक भी सम्मिलित है) इस परिषद् के अभिवर्धन में प्रारम्भ से ही सक्रिय रही हैं । रुहेलखण्ड -कुमायूँ जैन परिषद् की स्थापनामें भी मा० उग्रसेनजीके साथ बिजनौर के बाबू रतनलालजी एडवोकेटका प्रमुख हाथ रहा है । उनकी प्रेरणासे ही इस क्षेत्रकी एक जैन डायरेक्टरी प्रकाशित की गई है। यद्यपि जैन अग्रवाल समाजके लिये दस्तूरुल अमलका विधान १९२५ में धामपुरमें बनाया गया था, पर उसकी कार्यरूपमें परिणति जिला दि० जैन परिषद् के नहटौरके १९४१ के अधिवेशनमें पारित संशोधित प्रस्तावके बाद ही सम्भव हुई । इसके अनुसार दहेज प्रथा तथा अन्य कुरीतियोंपर अंकुश लगाया जा सका । यह प्रस्ताव लेखकके मन्त्रित्वकालमें बड़े साहस और श्रमके बाद पारित किया जा सका । यह क्षेत्रीय जैन समाजके लिये नवजागरण का प्रथम संकेत था । सामाजिक कार्यो के अतिरिक्त, यह क्षेत्र स्वतंत्रता संग्रामियोंका भी गढ़ रहा है । इस क्षेत्रकी जैन समाज इस दिशा में भी काफी आगे रही है । रामपुरके कल्याण कुमार शशि, धनौराके शान्तिस्वरूप कुसुम, अयोध्याप्रसादजी गोयलीय, जुगल किशोर मुख्तार, ज्योतिप्रसादजी प्रेमी, बाबू शान्तिचन्द्र तथा अन्य कवियों, ज्ञानियों, जैन पत्र सम्पादकों, साहित्य सृष्टाओंने इस दिशामें जो योगदान किया है, वह इस क्षेत्र की कीर्तिको चिरस्मरणीय बना रहा है । इस दिशामें बाबू रतनलाल एडवोकेटका योगदान कौन भूल सकता है जिन्होंने अनेकों बार जेल यात्रा भी की है । वस्तुतः न केवल निकट अतीत में ही, अपितु वर्तमान में इस क्षेत्र प्रभूत जैन बन्धु देश और समाजकी भी प्रगति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं । बिजनौर, नजीबाबाद एवं नहटौर आदि स्थानोंमें अनेक जैन शिक्षण संस्थायें कार्यरत हैं, जंन पाठशालायें हैं, अनेक समाजसेवी संस्थायें हैं जो समाजकी अमूल्य सेवा कर रही हैं । हमें इनके संचालकों पर गर्व है । हमारी कामना है कि इस क्षेत्रमें जैन संस्कृतिकी मशाल को अविरत जलाते रहने के लिए ऐसी ही विभूतियाँ सदा अवतरित होती रहें । Jain Education International ६० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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