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________________ ध्यायने वर्धमानचरितम्‌के प्राक्कथनमें लिखा है कि अश्वघोष एवं कालिदासकी परम्परामें कहाकवि असगने वर्धमानचरितम्की रचना की । कविके वर्धमानचरितम्की कथावस्तुके मूल आधार प्राकृत भाषाके तिलोयपणत्ति ग्रन्थ में मिलते हैं । दिगम्बर आम्नायके तीर्थंकर और इलाकापुरुषोंके चरित तिलोयपण्णत्तिके आधार पर ही विकसित हुये हैं । वृत्त वर्णनके रूपमें वर्धमानचरितम् के कथानकका आधार गुणभद्रका उत्तरपुराण जान पड़ता है क्योंकि उत्तरपुराणके ७४ वें पर्वमें वर्धमान भगवानकी जो कथा विस्तारसे दी गई है, उसका संक्षिप्त रूप इसमें उपलब्ध होता है । उनके तत्त्वोपदेशका मूलाधार उमास्वामीका तत्त्वार्थसूत्र, पूज्यपादकी सर्वार्थसिद्धि तथा अकलंक स्वामीका राजवार्तिक जान पड़ता है । समवसरणका विस्तृत वर्णन जिनसेनके महापुराण पर आधारित है। महाकविने पौराणिक वृत्त को काव्यके साँचे में ढालकर महाकाव्यका स्वरूप दिया है । आदिपुराण में महाकाव्य के स्वरूप का वर्णन करते हुये लिखा है कि इतिहास और पुराण प्रतिपादित चरितका रसात्मक चित्रण करना तथा धर्म, अर्थ और कामके फलको प्रदर्शित करना महाकाव्य । धर्मत्वका प्रतिपादन करना ही काव्यका प्रयोजन है । अतः काव्यके मूलमें धर्म तत्त्वका रहना परम आवश्यक है। इस चरित काव्यमें महाकाव्य के समस्त लक्षणोंका समावेश किया गया है । वर्धमान इसके नायक हैं जो क्षत्रिय कुलोत्पन्न धीरोदात्त नायकके गुणोंसे युक्त हैं । इसका अंगी रस शान्त हैं । अंग रसके रूपमें शृंगार, भयानक तथा वीर रसका प्रयोग किया गया है यह नमस्कारात्मक पद्योंसे प्रारम्भ हुआ है और मोक्ष इसका फल है । सर्गोंकी रचना एक ही छन्दमे हुई है । पर सर्गान्तमें छन्दोवैषम्य है । नवम्, दशम्, पञ्चदश और अष्टदश सर्गकी रचना नाना छन्दोंमें हुई है । इस ग्रन्थमें उपजाति, वसन्ततिलका, वियोगिनी, शिखरिणी, वंशस्थ, शार्दूलविक्रीडित, अनुष्टुप् मालिनी, मन्दाक्रान्ता आदि छन्दोंका प्रयोग हुआ है । इसमें देश, राजा, राज्ञी पुत्र- जन्म, ऋतु, वन, समुद्र, मुनि, देव देवियाँ, युद्ध, विवाह, संध्या, चन्द्रोदय, सूर्योदय, तपश्चरण और धर्मोपदेश आदि सभी वर्णनीय विषयोंका समावेष है । । शान्तिनाथपुराणका विरवण कविकी दूसरी रचना शांतिनाथपुराण है जिसकी रचना कविने वर्धमानचरित के पश्चात् की है । इसका निर्देश उन्होंने ग्रन्थके अन्तमें किया है । वर्धमानचरितम् में भाषा विषयक जो प्रौढ़ता है, वह शान्तिनाथमें नहीं है पुराण क्योंकि वर्धमानचरितम् काव्यकी शैली में लिखा गया है और शान्तिनाथ पुराण शैलीमें । पुराण शैलीमें लिखे जानेके कारण इसमें अधिकांशतः अनुष्टुप् छन्दका प्रयोग हुआ है । इसकी भाषा सरल है पर भाव गम्भीर हैं । आद पुराणमें प्राचीन आख्यानोंको पुराण कहा गया है, 'पुरातनं पुराणं स्यात् ' ( आदि १ २१ ) । पुराणका प्रमुख तत्व पौराणिक विश्वास है । पौराणिक विश्वास प्राचीन परम्परासे प्राप्त होता है । लेकिन इसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे कथा अवश्य रहती है । पौराणिक कथायें सत्य मानी जाती है । इनका उद्देश्य विभिन्न प्रकारको वस्तुओं, विश्वासों रीति-रिवाजोंकी उत्पत्ति तथा उपयोगिता समझाना है । पुराणके दो भेद हैं - १. पुराण और २. महापुराण । जिसमें एक शलाका पुरुषका वर्णन होता है, वह पुराण है और जिसमें त्रेसठ शलाका १. महापुराण सम्बन्धित महागायकगोचरम् । त्रिवर्गफलसन्दर्भ महाकाव्यं तदिष्यते ॥ आदि०, १।६२-६३ २. चरितं विरचय्य सन्मतीयं सदलंकारविचित्रवृत्तबन्धम् । स पुराणमिदं व्यधत्त शान्तेरसग: साधुजनप्रमोदशान्यै ॥ ४१ ॥ Jain Education International - ४८३ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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