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________________ सुविधा किसी विश्वविद्यालय में भी उपलब्ध नहीं थी । वस्तुतः इस क्षेत्रमें कार्य करनेके लिए विद्वानोंको समुचित व्यवस्था की आवश्यकता होती है जहाँपर विद्यार्थी अध्ययन और शोध कर सकें और प्राचीन एवं आधुनिक विद्वानोंसे सम्बन्ध रख सकें । समयकी इस महत्वपूर्ण आवश्यकताको ध्यान में रखकर इस संस्थाकी स्थापना की गई । प्राकृत शोध संस्थानके विभाग उपर्युक्त लोक-कल्याणकी भावनासे स्थापित प्राकृत शोध संस्थान के कार्यका वर्गीकरण तीन भागों मैं किया जा सकता है : [१] उच्च अध्ययन—प्राकृत एवं जैन शास्त्र के उच्च अध्ययन हेतु इस संस्थामें स्नाकोत्तर स्तरपर साहित्य, जैन दर्शन, जैन तर्कशास्त्र, ज्ञान मीमांसा तथा तुलनात्मक दर्शन में द्विवर्षीय एम०ए० के पाठ्यक्रमकी व्यवस्था की गई है । विद्यार्थीको यह स्वतंत्रता रहती है कि उसकी जिस विषयमें रुचि हो उसीके अनुरूप अपना अध्ययन करे । यह संस्थान अपने पाठ्यक्रम और शोध कार्यके लिए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुरसे सम्बन्ध है । सन् १९५८ से ७६ तक इस संस्थासे कुल ८८ छात्रोंने प्राकृत जैनालाजीकी एम०ए० परीक्षा उत्तीर्ण की । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त सभी छात्रोंने साहित्य विषय लेकर ही एम०ए० किया है । उत्तरवर्ती वर्षोंमें लगभग एक दर्जन छात्रोंने और एम०ए० किया है। इनमेंसे अनेक स्नातक देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और महाविद्यालयोंमें कार्य कर रहे हैं और प्राकृत एवं जैन विद्याओं की सेवा कर रहे हैं । इस संस्थाके कुछ विश्रुत स्नातकोंके नाम यहाँ देना उपयुक्त ही होगा : डॉ० नगेन्द्रप्रसाद, प्रोफेसर तथा निर्देशक वैशाली शोध संस्थान, वैशाली । डॉ विमलप्रकाश जैन, महामंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली । डॉ० राजाराम जैन, रीडर, एच०डी० जैन कालेज, आरा (बिहार) डॉ० देवनारायण शर्मा, व्याख्याता, वैशाली शोध संस्थान । डॉ० रामप्रसाद पोद्दार, I डॉ० लालचन्द्र जैन, I डॉ० राय अश्विनी कुमार, प्राकृत विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया । डॉ० अजितशुकदेव शर्मा, व्याख्याता, जैन दर्शन, विश्वभारती, शान्तिनिकेतन । डॉ० नन्दकिशोर प्रसाद, पालि शोध संस्थान, नालन्दा । 21 #3 डॉ० दामोदर शास्त्री, अध्यक्ष, जैन दर्शन, लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली । डॉ० श्री रंजनसूरि देव, बिहार राष्ट्र भाषा परिषद, पटना (बिहार ) । डॉ० ए०पी० सिन्हा, पटियाला विश्वविद्यालय । डॉ० अर्हद्वास दिगे, मैसूर विश्वविद्यालय । डॉ० प्रेमसुमन जैन, रीडर, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर । डॉ० गोकुलचन्द जैन, रीडर, संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी । डॉ० एस०एम० शाह, पूना विश्वविद्यालय । Jain Education International इस लघु सूचीसे यह स्पष्ट होता है कि यहाँके स्नातक देशके विभिन्न भागों में इस संस्थानको गौरवान्वित कर रहे हैं । - ४७६ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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