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________________ चन्द्र और सूर्यकी दृश्य स्थितिमें १२ अंशके अंतर होनेकी अवधिको तिथि कहा जाता है। चन्द्र और पृथ्वीकी भ्रमण कक्षाएँ दीर्घवृत्ताकार होनेसे यह अवधि कभी एक दिन-रातसे अधिक भी होती है। तब एक ही तिथि दो दिनोंमें होनेसे तिथिकी वृद्धि कही जाती है तथा जब कोई तिथि सूर्योदयके बाद कभी आरम्भ होकर दूसरे दिनका सूर्योदय होनेके पूर्व ही समाप्त हो जाती है, तब उस तिथिका क्षय कहा जाता है।' ४. चन्द्र और सूर्य विस्तार :-गाथा १४४ के अनुसार चन्द्रका विष्कम्भ (व्यास) ५६६१ योजन तथा सर्यका ४८/६१ योजन है। कोणमापक यन्त्रों और त्रिकोणमितिके नियमोंके आधार पर को गई वर्तमान गणनाके निष्कर्ष इस विषयमें बिलकुल भिन्न है। वर्तमान गणनाके अनुसार चन्द्रका व्यास २०५९,९ मील तथा सूर्यका व्यास ८६४००० मील है । ५. सूर्यकी गति :-गाथा १९६ के अनुसार सूर्यके वृत्ताकार भ्रमण मार्गका न्यूनतम ३१५०८९ योजन तथा अधिकतम ३१८३५० योजन है। सूर्य साठ मुहूर्तमें मेरु पर्वतकी एक परिक्रमा पूरी करता है । अतः सूर्यकी प्रति मुहूर्त गति न्यूनतम ५२५१०५ योजन एवं अधिकतम ५३०६.८ योजन होती है। जिसे पुरातन धारणामें सूर्यकी दैनिक गति कहा जाता था, उसे आधुनिक धारणामें पृथवीकी अपनी धुरी पर घूमनेकी दैनिक गति कहा जाता है। भूमध्यरेखा पर यह गति लगभग एक हजार मील प्रति घंटा (या लगभग आठसौ मील प्रति मुहूर्त) आंकी गयी है। वर्तमान भारतका पूर्वपश्चिम विस्तार लगभग दो हजार मील अर्थात् २५० योजन है । पुरातन गणितके अनुसार इसकी पूर्वसीमा और पश्चिम सीमाके सूर्योदय समयमें १/२० मुहर्त अर्थात् लगभग ढाई मिनटका अन्तर होना चाहिए। वर्तमान निरीक्षणोंमें अन्तर लगभग दो घंटेका है। ६. चन्द्र और नक्षत्रोंका योग :-चन्द्र के भ्रमण मार्ग में दिखने वाले २८ नक्षत्रोंकी तारकाओंमें परस्पर अंतर अधिक नहीं है। प्रत्येक नक्षत्रसे चन्द्रका योग कितनी अवधि तक रहता है, इसका विवरण गाथा १५०-१५३ में है। इसके अनुसार शतभिष, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा-इन नक्षत्रोंमें चन्द्र १५ मुहूर्त रहता है, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, पुनर्वसु और विशाखामें चन्द्र ४५ मुहूर्त रहता है तथा शेष १५ नक्षत्रोंमें चन्द्रका निवास ३० मुहूर्त होता है, सबसे कम अवधि अभिजित नक्षत्रकी है जो एक दिन-रातका सडसठवाँ भाग कही गई है। वर्तमान गणनामें नक्षत्रोंमें चन्द्रके योगकी अवधिमें अन्तर तो है, परन्तु वह इतना अधिक नहीं है क्योंकि ग्रहभ्रमणमार्गके खगोलवृत्तके सत्ताइस समान विभाग कर उन्हें नक्षत्र कहा गया है। अभिजितको अब नक्षत्रोंमें नहीं गिना जाता। नक्षत्रका विस्तार समान मानने पर भी चन्द्रकी भ्रमणकक्षा दीर्घवृत्ताकार होनेसे प्रत्येक नक्षत्रसे उसके योगका समय कम अधिक होता है । उदाहरार्थ, इस १९७९ के भाद्रपद मासमें न्यूनतम समय धनिष्ठा नक्षत्रका २० घंटे १. इण्डियन एफिमेरीज (स्वामिकन्नु पिल्ले, मद्रास १९२२)के प्रत्येक खण्डकी भूमिकामें इसका संक्षिप्त स्पष्टीकरण दिया गया है। २. अर्वाचीनं ज्योतिविज्ञानम्, पृ० ५६ और ९७ ३. भारतकी पश्चिमी सीमाकी देशांतर रेखा ६८ अंश और पूर्वी सीमाकी ९७ अंशकी है, प्रत्येक अंशके सूर्योदयका समय उसके पूर्ववर्ती अंशके सूर्योदयके समयसे चार मिनट बादका होता है (जिऑग्रफी आफ इण्डिया-गोपाल सिंह, दिल्ली १९७६ तथा टिप्पणी ९,१० का सन्दर्भ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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