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________________ जैनग्रन्थ तिलोयपण्णत्तिमें भी शुरूसे आखीर तक जोड़ने के लिये 'छण' शब्द लिखा है क्योंकि प्राचीन साहित्यमें धनके लिये 'घण' शब्द प्रयोग होता था। इसके विपर्यासमें, पं० टोडरमलने अर्थसंदष्टि नामक ग्रन्थमें जोड़नेके लिये (-) चिह्न का प्रयोग किया है, यथा log, log, (अ) + १ के लिये इस ग्रन्थमें इसप्रकार लिखा है : जोड़ने के लिये, विशेषकर भिन्नोंके प्रयोगमें तिलोयपण्णत्ति और अर्थसंदष्टिमें खड़ी लकीरका प्रयोग मिलता है', यथा १।१ का आशय १ + १ से है । घटानेके लिये संकेत वक्षाली हस्तलिपिके देखनेसे पता चलता है कि उसमें घटानेके लिये + चिह्नका प्रयोग किया जाता था । यह + चिह्न उस अंकके बाद लगाया जाता था जिसे घटाना होता था। यथा, २० में ३ घटानेके लिये इसप्रकार लिखा जाता था : २० कुछ जैन ग्रन्थोंमें भी घटाने के उपरोक्त संकेतका प्रयोग मिला है परन्तु यह + चिह्न घटायी जाने वाली संख्याके ऊपर लिखा जाता था। आचार्य वीरसेनने धवलामें इसप्रकारके संकेतका प्रयोग किया है। तिलोयपण्णत्ति और त्रिलोकसार और अर्थसंदृष्टिमें घटानेके लिये चिह्न भी मिलता है। जैसे २०० मेंसे २ घटानेके लिये इसप्रकार लिखते है : २०० त्रिलोकसार और अर्थसंदृष्टिमें घटानेके लिये ० का संकेत भी मिलता है। यथा, यदि २०० मेसे ३ घटाने हो, तो इसप्रकार लिखते थे : २०० टोडरमलने घटानेके लिये U और संकेतोंका प्रयोग भी अर्थसंदृष्टिमें किया है। यथा, यदि एक लाखमेंसे ५ घटाना हो, तो इसप्रकार लिखते थे : लU५ तथा ला गुणाके लिये संकेत गुणाके लिये वक्षाली हस्तलिपिने 'गु' संकेतका प्रयोग मिलता है। यह संकेत 'गु' शब्द गुणा अथवा 'गुणित' का प्रथम अक्षर है । यथा : १. तिलोयपण्णत्ति , भाग २, पृ० ७७१ तथा अर्थसंदृष्टि, पृ० ११ । २. धवला, पुस्तक १०, १९५४, पृ० १५१ । - ४०६ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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