SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) डेनमार्क : राष्ट्रीय संग्रहालय, कोपेनहेगन ___इस संग्रहालयमें मुख्यतः आध्रप्रदेश व कर्णाटकसे प्राप्त जैन मूर्तियोंका अच्छा संग्रह है। ये सभी मूर्तियाँ ११वीं-१२वीं शतीकी हो सकती है। इस संग्रहमें कई चालुक्य युगीन महावीर स्वामीकी नग्न प्रतिमाएं हैं, जिनमें उन्हें कायोत्सर्ग-मुद्रामें दर्शाया गया है । इसके अतिरिक्त, ऋषभनाथकी एक चौबीसी भी है जिसमें मूल प्रतिमाके दोनों ओर तथा ऊपरी भागमें अन्य तेईस तीर्थकरोंकी लघ आकृतियाँ भी उत्कीर्ण की गई मिलती हैं । ये सभी मूर्तियाँ ध्यान मुद्रामें हैं । (४) इटली : राष्ट्रीय संग्रहालय, रोम इस संग्रहालयमें गुजरातमें सन् १४५० ई० में बनी भगवान नेमिनाथकी कायोत्सर्ग मुद्रामें खड़ी मूर्ति मुख्य आकर्षण है। इनके दोनों ओर अन्य दो-दो तीर्थकर खड़े व बैठे दिखाये गये हैं। मुख्य मूर्तिके पैरोंके समीप उनके यक्ष एवं यक्षी गोमेध एवं अम्बिका भी बैठे दिखाये गये हैं । कलाकी दृष्टिसे भी यह मूत्ति पर्याप्त रूपसे सुन्दर है। (५) बुलगेरिया : रज्रनेड संग्रहालय, रज्रग्रेड राजस्थानमें लगभग ११वीं शती ई० में निर्मित्त परन्तु उत्तर-पूर्वी बुलगेरियामें सन् १९२८ में पाई गई इस मूत्तिमें तीर्थंकरको एक कलात्मक सिंहासनपर बैठे दिखाया गया है । अन्य प्रतिमाओंकी भाँति इसके वक्षपर भी कमलकी पंखुड़ियोंके समान श्रीवत्स चिह्न अंकित है । (६) स्विटजरलेन्ड : रिटवर्ग संग्रहालय, ज्यूरिक ___ ज्यूरिकके इस सुप्रसिद्ध संग्रहालयमें राजस्थानमें चन्द्रावती नामक स्थानसे प्राप्त भगवान आदिनाथकी लगभग आदमकद प्रतिमा विद्यमान है जो श्वेत संगमरमरकी बनी है। इसमें उनके दो कलात्मक स्तम्भोंके बीच कायोत्सर्ग मुद्रामें दिखाया गया है । इसके ऊपरी भागमें त्रि-छत्र बना है। इन्होंने सुन्दर धोती धारण कर रखी है जिससे स्पष्ट है कि उसकी प्रतिष्ठापना श्वेताम्बर सम्प्रदायके जैनियोंद्वारा की गयी थी। पीठिकापर बने वषभके अतिरिक्त उनके चरणोंके पास दानकर्ता एवं उनकी पत्नी तथा अन्य उपासकोंकी लघु मूर्तियाँ बनी हैं। कलाकी दृष्टिसे यह मूत्ति परमार काल, लगभग बारहवीं शतीकी बनी प्रतीत होती है। (७) जर्मनी : (अ) म्यूजियम फर वोल्कुर कुण्डे, बलिन इस संग्रहालयमें मथुरा क्षेत्रमें प्राप्त कुषाणकाल (२-३ शती) के कई जिन शीर्ष विद्यमान हैं । इस प्रकारके कई अन्य शीर्ष स्थानीय राजकीय संग्रहालयमें भी देखनेको मिलते हैं। उपर्युक्त मूर्तियोंके अतिरिक्त दक्षिण भारतमें मध्यकालमें निर्मित कई जैन प्रतिमायें भी यहाँपर प्रदर्शित हैं । इन सभी मूत्तियोंमें जिनको कायोत्सर्ग मद्रामें नग्न खडे दिखाया गया है। इनके पैरोंके समीप प्रत्येक तीर्थंकरके सेवकों तथा उपासकोंकी लघु मूत्तियाँ उत्कीर्ण की गई मिलती हैं । (ब) म्यूजियम फर वोल्कुर कुण्डे, म्यूनिख : इस संग्रहालयमें यक्षी अम्बिकाकी एक अत्यन्त भव्य प्रतिमा प्रदर्शित है जिसे पट्टिकापर दुर्गा बताया गया है। मध्यप्रदेशसे प्राप्त लगभग अठारहवीं शतीकी इस मूर्तिमें देवी अपने आसनपर ललितासनमें विराजमान है। इनके दाहिने हाथमें गच्छा था जो अब टूट गया है और दूसरे हाथसे वह अपने पुत्र प्रियंकरको गोदीमें पकड़े हुए है। इनका दूसरा पुत्र पैरोंके समीप खड़ा है। देवीके शीशके पीछे बने प्रभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy