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________________ स्थित पन्द्रह प्रमुख संग्रहालयोंमें जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमायें सुरक्षित हैं, उनका ही संक्षेपमें वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं । ये संग्रहालय मुख्यतः ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, बुलगेरिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड, डेनमार्क एवं अमेरिका में स्थित हैं । (१) ब्रिटेन : (अ) ब्रिटिश संग्रहालय, लन्दन लन्दन स्थित इस विख्यात संग्रहालय में मथुरा से प्राप्त कई जिन शीर्षोंके अतिरिक्त उड़ीसा से मिली एक पाषाण मूर्ति भी है जिसमें आदिनाथ एवं महावीरको साथ-साथ कायोत्सर्ग मुद्रामें दर्शाया गया है । पीठिकापर आदिनाथ और महावीरके लांक्षण वृषभ तथा सिंहोंका अंकन है । इसके साथ ही उपासिकाओंकी मूर्तियाँ भी बनी हुई हैं । कलाकी दृष्टिसे यह मूर्ति ग्यारहवीं शतीमें बनी प्रतीत होती है । उड़ीसामें ही प्राप्त नेमिनाथकी यक्षी अम्बिकाकी लगभग उपर्युक्त प्रतिमाकी समकालीन मूर्ति भी यहाँ विद्यमान है जिसमें वह आम्रवृक्ष के नीचे खड़ी है । इनका छोटा पुत्र प्रभंकर गोद में व बड़ा पुत्र शुभंकर दाहिनी ओर खड़ा हुआ है । मूर्तिके ऊपरी भाग में नेमिनाथकी लघु मूर्ति ध्यान मुद्रामें है तथा पीठिकापर देवीका वाहन सिंह बैठा दिखाया गया है । इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश से प्राप्त सुलोचना, धृति, पद्मावती, सरस्वती तथा यक्ष एवं यक्षीकी सुन्दर प्रस्तर मूर्तियाँ भी विद्यमान हैं । अन्तिम मूर्तिकी पीठिकापर अनन्तवीर्य उत्खनित है । (ब) विक्टोरिया एवं एलर्बट संग्रहालय, लन्दन इस संग्रहालय में कुषाण एवं गुप्त कालोंकी भगवान ऋषभकी दो मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं । साथही, मध्यप्रदेशमें ग्यारसपुर नामक स्थानसे लाई गयी पार्श्वनाथकी एक अद्वितीय मूर्ति भी विद्यमान है जो सातवीं शतीकी प्रतीत होती है । इसमें तेइसवें तीर्थंकर ध्यान मुद्रामें विराजमान हैं और मेघकुमार एक बड़े तूफानके रूपमें उनपर आक्रमण करता दिखाया गया है। साथ ही, नागराज धरणेन्द्र अपने विशाल फण फैलाकर उनकी पूर्ण सुरक्षा करता दर्शाया गया है और उसकी पत्नी एक नागिनीके रूपमें तीर्थंकरके ऊपर अपना छत उठाये हुए हैं । मूर्तिके ऊपरी भाग में जिनकी कैवल्य प्राप्तिपर दिव्य गायक नगाड़ा बजाता भी दिखाया गया है । प्रस्तुत मूर्ति जैन मूर्तिकला की दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वकी है । उपर्युक्त मूर्तिके समीप ही, सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथकी एक विशाल धातु प्रतिमा प्रदर्शित है जिसमें वह सिंहासन में ध्यानमुद्रामें बैठे । इसके दोनों ओर एक-एक चँवरधारी सेवक खड़ा है । मूर्तिपर विक्रम संवत् १२२४ (११६८ ई०) के खुदे लेखसे ज्ञात होता है कि राजस्थान में चौहान शासकोंके समय इसकी प्रतिष्ठापना नायल-गच्छके अनुयायियोंद्वारा की गई थी । (२) फ्रांस : म्यूजिगिमे पेरिस इस संग्रहालय में कई जैन प्रतिमाएँ हैं जिसमें चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीरकी कांस्य मूर्ति विशेष रूपसे सुन्दर है । इसमें वह एक सिंहासनपर ध्यान मुद्रामें बैठे हैं । उनकी दाहिनी ओर तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ सर्प फनोंके नीचे कायोत्सर्ग मुद्रामें खड़े हैं और बाईं ओर बाहुबलि, जिनके शरीरपर लतायें लिपटी हुई हैं, खड़े हैं । इस आशयकी कांस्यकी मूर्तियाँ प्रायः कम ही पाई जाती हैं । कर्णाटक में निर्मित यह मूर्ति चालुक्य कलाके समय ( नवमी - दसवीं शती) की बनी प्रतीत होती है । यहाँ राजस्थान के पूर्वी भागसे प्राप्त एक पाषाण सिरदल भी है जो कलाका सुन्दर उदाहरण है। इसके नीचे वाली ताखमें ध्यानी जिनकी मूर्ति निर्मित है और उनके दोनों ओर अन्य दो-दो तीर्थंकर कायोत्सर्ग मुद्रामें उत्कीर्ण किये मिलते हैं | यह तेरहवीं चौदहवीं शतीकी मूर्ति है । ४५ - ३५३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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