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________________ उस भूभागमें भी अनेक जैन स्थल मिलेंगे, इसमें जरा भी सन्देह नहीं। मध्य भारत, उत्तर प्रदेश तथा बिहारमें अनेक जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं और हजारों कांस्य मूर्तियाँ पश्चिमी भारतको स्थानीय कलाशैलीमें मिली हैं जिनके अध्ययनसे ज्ञात होता है कि राजस्थानकी भाँति ही बिहार तथा बंगालमें भी जैनियोंकी अपनी उत्कृष्ट कला-शैली थी। उत्तर बिहारके विपरीत दक्षिण बिहारमें जैन कलाके कुछ उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। प्रसिद्ध कलामर्मज्ञ पर्सी ब्राउनने यह ठीक ही कहा है कि जैन कलाकारोंने कुछ विशेष पर्वतों ('Mountains of Immortality') का चयन कर उनके शिखरों पर मन्दिरों तथा स्तुपोंका निर्माण कर उन्हें कला जगत में अमर कर दिया। इन पर्वतीय प्रदेशोंको 'मंदिर नगर' कहना कोई अत्युक्ति नहीं होगी। इनमें से प्रत्येक मंदिर अथवा 'तीर्थ' सदियोंके श्रद्धापूर्ण अध्यवसायके जीवित प्रतीक है जो किसी भी दृष्टिसे विलक्षण और बेजोड़ कहे जा सकते हैं । चाहे पार्श्वनाथ पर्वतके मंदिर हों अथवा राजगीरके, ये अपने आप में एक पवित्र नगर हैं जो भवनोंके दृश्यको प्रथम दृष्टिमें ही श्रद्धासे परिपूरित कर देते हैं । शाहाबाद जिले में तो 'धर्मचक्र' भी पाये गये हैं। ठीक यही बात हजारीबागके कुलुहा पर्वतके साथ भी है । यहाँ जैन तीर्थकर शीतलनाथका जन्म हुआ था और यहाँ दिगम्बर सम्प्रदायकी काफी मूर्तियाँ मिली हैं। यहाँ पर पत्थरोंको तराश कर जो दस दिगम्बरी मूर्तियाँ गढ़ी गयी हैं उन्हें लोग पाँचो पांडव तथा उनके दासोंकी मूर्तियाँ भी मानते हैं, जो तर्कसंगत नहीं अँचता। इसी प्रकार छोटा नागपुरका मानभूमि जिला भी किसी समय जैनधर्मका एक महान केन्द्र था । जैन पुरातत्वके जितने अवशेष यहाँ प्राप्त हुए हैं, संभवतः भारतके किसी भी स्थानमें अभी तक इतने नहीं मिले है। प्राचीन कालमें बंगाल अथवा बिहारसे उड़ीसा जानेके लिये मानभूम होकर ही लोगोंको जाना पड़ता था। उड़ीसा-स्थित खंडगिरि पर्वतकी गुफाओंमें जैनियोंके विलक्षण पुरातात्विक अवशेष मिले हैं । उड़ीसाका प्रसिद्ध सम्राट खारवेल गया-स्थित बराबर पहाड़ियों तक आया था और मानभमके माध्यमसे ही बिहार और उड़ीसाके बीच उस समय सम्पर्क स्थापित था। मानभमसे इतनी प्रचर मात्रामें जैन अवशेषोंकी प्राप्तिके पीछे यह भी एक कारण हो सकता है। ह्वेनसांगके अनुसार यहाँके बाराभुम परगनाके 'बड़ा बाजार' नामक स्थान तक भगवान महावीर भ्रमण करने आये थे। बलरामपुर, बोराम, चंदनकिआरी, पकबीरा, बुधपुर, दारिका, चर्रा, दुल्मी, देवली, भवानीपुर, अनई, कटरासगढ़, चेचगाँवगढ़ आदि छोटापुरके अनेक स्थानोंमें जैन अवशेष भरे पड़े हैं जिनका जैनधर्मके इतिहासमें अपना एक खास महत्व है। ठीक इसी प्रकार गया, शाहाबाद, भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि स्थानोंमें भी जैन अवशेष पाये जाते हैं जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है और जिनका सम्यक अध्ययन, बिहारमें जैनधर्मके वास्तविक स्वरूप एवं उसके प्रचार-प्रसारको जाननेके लिये अत्यन्त आवश्यक है। इस दिशामें अभी हालमें डा० राजाराम जैनने अपने लघुग्रन्थ 'श्रमण साहित्यमें वर्णित बिहारकी कुछ जैन तीर्थ भूमियां' द्वारा स्तुल्य प्रयास किया है। किन्तु यह तो विशाल सागरमें मात्र एक बिन्दुकी भाँति है। १. पर्सी ब्राउन, 'इंडियन आर्किटेक्चर' (दी टेम्पुल सीटीज आफ दी जैन्स)। २. विशेष विवरणके लिये देखिये, पी०सी० रायचौधरी, 'जैनिज्म इन बिहार' । ३' गया जिला भगवान महावीर २५०० वाँ निर्वाण-महोत्सव संगोष्ठी संचालन समिति द्वारा १९७५ ई० ' में प्रकाशित । २. इस सम्बन्धमें विशेष विवरणके लिये देखिये, हीरालाल जैन-कृत 'भारतीय संस्कृतिमें जैनधर्मका योगदान ।' - २८६ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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