SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४ ] साहित्यिक साक्ष्य के अतिरिक्त बिहार में जनमत के सम्बन्ध में हमें पुरातात्विक साक्ष्यों -- जैसे जैन कला तथा स्थापत्य जिसके अवशेष समस्त उत्तर भारतमें आज भी पाये जाते हैं—से भी पर्याप्त सहायता मिलती है । वास्तव में भारतीय कलाको जैनियोंकी देन किसीसे कम नहीं है । स्थापत्यकलाके क्षेत्रमें जैन कलाकारोंने जो पूर्णता प्राप्त की, उसका दृष्टान्त अन्यत्र कहीं भी मिलना कठिन है । यद्यपि बिहार में जैन कलाके बहुत से अवशेष प्राप्त हैं, फिर भी यह बड़े खेदकी बात है कि भगवान् महावीरकी जन्मभूमि वैशाली में कोई ऐसा अवशेष नहीं मिलता जो जैन संघसे सम्बन्धित हो । हाँ, जैन साहित्य में वैशाली तथा उसके पार्श्ववर्ती क्षेत्रों में तत्कालीन जैन मन्दिरोंके कई उल्लेख मिलते हैं । 'उवासगदसाओ" में ऐसा कहा गया है कि ज्ञात्रिकोंने अपनी निवास - भूमि कोल्लागके निकट एक जैन मन्दिरका निर्माण करवाया था जो 'दुइपलास चिय' (चैत्य ) के नामसे विख्यात था । बौद्ध परम्पराकी भाँति ही जैनियोंमें भी अपने तीर्थंकरोंकी समाधिके ऊपर स्तूपनिर्माणकी परम्परा थी और वैशालीमें जैन मुनि सुव्रतकी समाधि पर उस प्रकारके एक स्तूपका वर्णन मिलता है । इसी प्रकारके एक दूसरे स्तूपका उल्लेख मथुरामें मिलता है जो जैन मुनि सुपार्श्वनाथ की समाधि पर निर्मित हुआ था । वैशालीके स्तूपकी चर्चा ' आवश्यकचूर्णि ' 3 में की गयी है जिसमें इस प्रकार के कई प्रसंग आये हैं । अभी हाल में कौशाम्बी तथा वैशालीमें जो उत्खनन हुए हैं उनमें विभिन्न रंगों एवं 'चित्रित उत्तरी कृष्ण मृद्भाण्ड' (एन० बी० पी० वेयर) के कई नमूने मिले हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि इसी शैलीका जन्म मगध में ही हुआ था । 'औपपातिक सूत्र' में 'वम्पा नगरके उत्तर-पूर्व स्थित आम्रशालवन में जिस पूर्णभद्र चैत्यका उल्लेख मिलता है वह अत्यन्त प्राचीन तथा अपने ढंगका निराला था जिसके वर्णनसे जैन कलाकारोंकी स्थापत्य कला सम्बन्धी दक्षता पर पूर्ण प्रकाश पड़ता है। अभी हाल में वैशाली में भगवान् महावीरकी एक पालकाली मूर्ति मिली है जो वैशाली गढ़के पश्चिम स्थित एक मन्दिर में प्रतिष्ठापित है जहाँ भारतके कोनेकोनेसे जैनी श्रद्धावनत हो अपने 'जैनेन्द्र' की पूजा करने बड़ी संख्यामें प्रत्येक वर्ष, विशेषकर भगवान् महावीरकी जयन्तीके अवसर पर वहाँ जाते हैं । यह स्थान एक पवित्र जैन तीर्थ स्थल हो चला है। बेगूसरायका जयमंगलगढ़ भी जैनियोंका एक प्राचीन स्थान माना जाता है, यद्यपि इसकी पुष्टिमें अभी तक कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका है। कहा जाता है कि मौर्य शासक सम्प्रतिने बहुतसे जैन मंदिरोंका निर्माण करवाया था, किन्तु खेद है कि अभी तक उसके कोई भी अवशेष प्राप्त नहीं हो सके हैं । अंगदेश (आधुनिक भागलपुर ) का मंदार पर्वत जैनियोंका एक पवित्र स्थान माना जाता है, कारण यहीं पर बारहवें तीर्थंकर वसुपूज्यनाथने निर्वाण प्राप्त किया था । इस पर्वतका शिखर अत्यन्य पवित्र माना जाता है और लोगों का ऐसा विश्वास है कि यह भवन श्रावकोंके लिये निर्मित किया गया था जिसके एक प्रकोष्ठ में आज भी एक 'चरण' रखा हुआ है । यहाँ पर कुछ और जैन अवशेष मिले हैं । भागलपुरके निकट कर्णगढ़ में भी जैनधर्मसे सम्बन्धित अवशेष मिले हैं और यहाँके प्राचीन दुर्गके उत्तर एक जैन विहारका भी उल्लेख मिलता है । दक्षिण बिहार की अपेक्षा उत्तर बिहार (मिथिला) में जैन पुरातात्विक अवशेष, जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है, बहुत कम मिलते हैं । किन्तु यदि विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर उत्खनन किये जायें तो १. गुएरिनोत, ल रिलिजन जैन, पृ० २७९ । २. होएर्नले, भाग १, पृ० २ । ३. जिनदास कृत 'आवश्यकचूर्ण' (६७६ ई०), पृ० २२३-२७, ५६७ । Jain Education International - २८५ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy