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________________ आशीर्वचन आचार्य समन्तभद्रजी महाराज, बाहुबला पंडित कैलाशचन्द्रजीको सवृद्धि, समाधिवृद्धि तथा स्वात्मोपलब्धि प्राप्त हो, ऐसा मंगल व शुभ आशीर्वाद । हम आपका सब तरह से कुशल चाहते | आपकी जिनवाणी सेवा अपूर्व है । आप जैसे यथार्थखोजी विरल हैं । आपकी सातिशय बुद्धिको मेरा आशीर्वाद । हम आपका परमकल्याण चाहते हैं । पूज्य १०८ आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री शतायु हों । विद्वानोंका सम्मान प्राणिमात्र करें, ऐसी हमारी कामना है । मिथ्यात्वकी तुलना में स्याद्वादवेत्ता का जगह-जगह सम्मान करना चाहिये । प प्रयत्नकी सफलता के लिये मेरा पूर्ण आशीर्वाद । आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज सम्मान शब्दों द्वारा नहीं होता । शब्दों से केवल प्रदर्शन ही होता है । तथापि आपके समान अच्छे कार्यके लिये मेरा आशीर्वाद । डॉ० यशोदेवसूरिजी पालीताणा शास्त्रीजी जैसे विद्वान्का अभिनन्दन समुचित है । स्नातकोंके लिये यही गुरुदक्षिणा है । ग्रन्थ सम्पादन तटस्थ दृष्टिसे एवं सुचारु ढंगसे होगा, ऐसी आशा है । शास्त्रीजी ज्ञानकी खूब प्रभावना करते रहें । धर्मलाभ | भट्टारक श्री चारुकीर्तिजी, मूडबिद्री, कर्नाटक बहुश्रुत मनीषी परमश्रुतसेवक विद्वद्वर्यका अभिनन्दन वस्तुतः परम स्तुत्य कार्य है । यह कार्य वस्तुतः बहुत पहले ही सम्पन्न हो जाना चाहिये था । मेरा इस कार्य में पूर्ण सहयोग रहेगा । महास्वामी भट्टारक लक्ष्मीसेनजी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्रीकी सेवायें ध्यान में रखकर आप ग्रन्थ निकाल रहे हैं । यह स्तुत्य है । इस कार्य के लिये हमारी शुभाशीर्वाद सहित शुभकामना है । सभी सहयोगियोंके लिये आशीर्वाद : इति भद्रं भूयात । Jain Education International - १ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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