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________________ ३–'शुद्धः पूर्णज्ञानरूपः उपयोगः स शुद्धोपयोगः' जीवका शुद्ध, पूर्णज्ञानरूप उपयोग, सो शुद्धोपयोग है । यह परिभाषा ग्यारहवें-बारवें गुणस्थानमें ही सार्थक होगी, उसके पूर्व नहीं। इस प्रकार विचार कर देखा जाये तो आचार्य प्रणीत आगमिक व्यवस्था ही सर्वत्र ठीक बैठती है । उसके विपरीत जहाँ, जो कहा गया है, वह किसी न किसी विशेष विवक्षाकी दृष्टिसे ही कहा गया है । उस विशेष विवक्षाको दृष्टिमें लाये बिना उस कथनका सही अर्थ समझ नेमें भ्रम हो सकता है । स्वानुभूति हमारे पास 'स्व' का या 'पर' का, जो भी ज्ञान है, उसे हम चार कोटियोंमें बाँट सकते हैं-सूचना, ज्ञान, विश्वास और अनुभव (इन्फार्मेशन, नालेज, बिलीफ एवं एक्सपीरियेन्स)। (अ) साधारण, ऊपरी सतही या काम चलाऊ ज्ञान, चाहे वह कितना ही पुष्कल और चारुवाक् सुशोभित क्यों न हो, सूचना, या 'इन्फार्मेशन' की कोटिमें आता है । (ब) गहरे स्तरका, तुलनात्मक अध्ययन और मननसे युक्त, पूर्वापर सम्बन्ध और कार्य-कारण विवेककी निकष पर कसा हआ, अतिव्याप्ति, अव्याप्ति, असम्भव आदि सभी दूषणोंसे रहित यही ज्ञान तलस्पर्शी होता हुआ, विधि-निषेधोंकी खराद पर चढ़कर आभा प्राप्त करेगा, तब उसे ज्ञान या 'नालेज' की संज्ञा मिलेगी। (स) अभीप्सित वस्तु यही है, ऐसी ही है, इतनी ही है और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है, इससे 'कमो-वेश' भी नहीं है तथा इसके विपरीत भी नहीं हैं, ऐसी अडिग-आस्था अपने ज्ञान पर जब हमारे मनमें स्थापित हो जाये, तब उसी आस्थाका नाम विश्वास या 'बिलीफ' है। (द) ज्ञानसे जानी हुई वस्तुकी प्रक्रियाको स्वयं प्रयोग द्वारा देखना, उसके रसका आस्वादन करना या एक बार उसमेंसे होकर गुजरना ही अनुभव है। इसी दशाको ‘एक्सपीरिएन्स' भी कहते हैं । यहाँ ध्यान रखने की बात है कि यह अनुभव भी स्वानुभूति नहीं है । मात्र हमारे ज्ञानकी प्रयोग-सिद्ध अनुमोदनाका ही नाम यहाँ अनुभव है। उदाहरणके लिए, सुनीता एक लेडी डाक्टर है। प्रसव और प्रसव-सम्बन्धी निदान-चिकित्साकी विशेष योग्यता और डिग्री विदेशसे लेकर आई है। उसकी डिग्रियोंसे हमारे मन पर उसकी सचना ज्ञान और विश्वासकी छाप तो पड़ सकती है परन्तु जहाँ तक उसके अनुभवकी बात है वहाँ हमारा मन उसकी योग्यताको स्वीकार करनेके लिए तैयार नहीं होगा। दो चार वर्ष अस्पतालमें काम करके जब डा० सुनीता अपनी देख-रेखमें सौ-पचास प्रसव कराकर दस-बीस आपरेशन करके और दो-चार सौ महिलाओंकी निदानचिकित्सा आदि करके अपनी विज्ञता एवं कुशलताका प्रभाव अजित कर लेगी तभी हम उसे अनुभवी लेडी डाक्टरके रूपमें स्वीकार करेंगे । मजेकी बात यह है कि डा० सुनीताका यह प्रसव-अनुभव भी ज्ञानका उपरोक्त चौथा प्रकार ही है । हम उसे अनुभव या एक्सपीरियेन्स कहेंगे परन्तु स्वानुभव या स्वानुभूति नहीं कह सकते । प्रसवका स्वानुभव डा० सुनीताको उसी दिन प्राप्त होगा जिस दिन वह भी माँ बनकर स्वतः प्रसव की वेदना और मातृत्वकी गरिमाका अनुभव करेगी। ___ इसी प्रकार ज्ञान आराधन करता हुआ साधक भी, पंचास्तिकाय, षट् द्रव्य, सप्त तत्व और नौ पदार्थों के सम्बन्धमें पढ़ता है, सुनता है, जानता है, उस पर विश्वास करता है और कई बार प्रयोगके द्वारा उसका अनुभव भी करता है। विशेषकर स्व-आत्माको लेकर वह अपने अजित ज्ञानके नाना विकल्पों द्वारा -१७२ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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