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________________ और श्रम किया है। फिर भी, यह चयन कैसा रहा, इसपर हमारा प्रबुद्ध पाठकवर्ग ही निर्णय दे सकता है । सम्पादकोंको विश्वास है कि उनका यह सामग्री-चयन रुचिकर होगा। ग्रन्थके प्रारम्भमें भारतके विविध क्षेत्रोंमें काम करनेवाले ६३ समाजसेवियों, सहपाठियों, शिष्यों, विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयोंके विद्वानों एवं मनि व साधजनों के आशीर्वचन एवं संस्मरण दिये गए हैं जो पंडितजीकी विविध प्रवृत्तियोंका दिग्दर्शन कराते हैं और उनकी प्रभावकताका क्षेत्र प्रदर्शित करते हैं। इस खंडमें देरसे आये अनेक लोगोंके संस्मरणोंको सम्मिलित नहीं किया जा सका, इसका हमें खेद है। प्रथम खण्डमें माननीय पण्डितजीके व्यक्तित्व और कतित्वके विविध रूपों पर विवरणात्मक एवं समीक्षात्मक प्रकाश डाला गया है । हमें हर्ष है कि इसके अन्तर्गत आ० पण्डितजीने मेरा जीवन-क्रम देकर अपना अन्तरंग भी प्रस्तुत किया है। इस खण्डमें हम उनके द्वारा ही लिखित 'मेरे माता-पिता' (जैन सन्देश, १९६०) भी देना चाहते थे, पर वह अनुपलब्ध रहा। इस खण्डमें हमने उनके द्वारा लिखित तेरह मौलिक और अट्ठाईस सम्पादित, सहसम्पादित तथा अनुवादित कृतियोंके विवरणके साथ उनके द्वारा लिखित विविध लेखोंको भी विषयवार वर्गीकृत रूपमें दिया है। यह सूची पूर्ण है, यह हम नहीं कह सकते। साथ ही, पंडितजीका लेखन सम्प्रति भी जारी है। हमें समय पर अनेक आवश्यक पत्र-पत्रिकाएँ भी नहीं मिल सकों । फिर भी, इस कार्य में हमें स्याद्वाद विद्यालय, काशी, दि० जैन संघ, वर्णी विद्यालय, सागर तथा प्रो० उदयचन्द्र जैन, काशीसे अविस्मरणीय सहयोग मिला है। इस खंडमें हमने पंडितजीके तीन मौलिक ग्रन्थों-जैनधर्म, जैन-साहित्यका इतिहास, जैन-न्यायकी समीक्षा भी प्रस्तुत की है। इसमें पंडितजीके लेखन तथा विद्वत्ताके अनेक पहल प्रकाशमें आये हैं। इस प्रकारकी कृति-समीक्षा भी इस अभिनन्दन ग्रन्थकी एक अन्य विशेषता ही मानी जाएगी। इसका 'विद्यावृक्ष' भी एक नवीनताका प्रतीक है। ___द्वितीय खंडमें धर्म और दर्शनसे सम्बन्धित लेखोंमें भारतके चारों कोनोंके प्रश्रुत विद्वानोंने धार्मिक सिद्धान्तों तथा विषयों पर अधुनातनः तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । परम्परागत पाठकको इस खंडमें परम्परागत विषयोंके लेखोंका अभाव खटकेगा पर हमने युगानुरूप पाठ्य एवं शोधसामग्री देकर उनके ज्ञानकोशको बढ़ाना तथा विचार प्रेरण करना ही अधिक उपयुक्त समझा है। __ इसी प्रकार, साहित्य तथा इतिहास व पुरातत्त्वके तृतीय और चतुर्थ खंडोंमें भी हमारा लक्ष्य पाठकोंके लिए नवीन विधाओंकी सामग्री प्रस्तुत करना रहा है। हमें विश्वास है कि दो दर्जनसे अधिक लेखोंकी यह सामग्री अत्यन्त रोचक तथा ज्ञानवर्धक प्रमाणित होगी। अनेक लेखोंकी सचित्रता इसे और भी आकर्षण दे सकेगी। जैनदर्शनकी वैज्ञानिक परम्परा नामक पाँचवाँ खण्ड अनेक दृष्टियोंसे विचारप्रेरक है। वैज्ञानिक रूप हमने इस खण्डमें भौतिकी, रसायन, गणित, ज्योतिष, आयर्वेद, भगोल तथा खगोलसे सम्बन्धित जैन मान्यताओंपर तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक लेख दिये है । ऐसी सामग्री एक स्थानपर इस रूपमें अन्यत्र दुर्लभ है। लेखोंके हिन्दी सारके माध्यमसे उन्हें सामान्य पाठकों तक पहुँचानेका प्रयत्न किया गया है। हमारा विश्वास है कि यह सामग्री अनेक विद्वानों व शोधकोंके लिए समीक्षण, संशोधन एवं ज्ञानवर्धनकी प्रेरक बनेगी। इस खण्डके लेखकोंमें अनेक अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त है। इनके अधिकांश लेख मूलतः अंग्रेजीमें ही दिये गये हैं। इसमें हमारा उद्देश्य यह कि जैनदर्शनकी वैज्ञानिक परम्परा तथा मान्यताओंकी जानकारी ऐसे राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पाठकों तक भी पहँचे जिनसे यह समुचित स्थान और गरिमा ग्रहण कर सके। अभी तो जैन वैज्ञानिक मान्यताओंके विषयमें वैज्ञानिक जगत् प्रायः अन्धकारमें ही है । छठवा खड वर्तमान एवं भावी शोध-क्षेत्रोंकी ओर संकेत करता है। जैन विद्याओसे सम्बन्धित अधिकांश शोधकार्य अबतक विभिन्न भाषाओंमें उपलब्ध ललित-साहित्यसे ही सम्बन्धित रहा है। पर अब -१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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