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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभ कामनाएं : ६३ वे अद्वितीय व्यक्ति हैं • श्री देवेन्द्र कुमार जैन, मोटरवाले, सागर पूज्य पण्डितजीको दिनचर्या नियमित है। उनका वस्त्र-व्यवसाय न्याययुक्त और प्रत्येकके लिए विश्वासोत्पादक है। उदारता और वात्सल्य तो उनमें ऐसे हैं कि वे कभी उनके करने में चकते नहीं हैं । विद्वानों के प्रति उनका अनन्य स्नेह रहता है । अपने सिद्धान्त के वे पक्के हैं। जब मेरी बच्ची आयुष्मती नलिनीका विवाह उनके मझले पुत्र चि० विवेक कुमारके साथ हुआ तो उन्होंने भेंटमें एक रुपया और एक नारियल स्वयं । तथा अन्य सभी बरातीजनोंको भी एक रुपया और एक नारियल मात्र दिलाया। क्या गृह, क्या दुकान, क्या जीवन-व्यवहार और क्या धार्मिक जीवन सबमें एकरूपता है। मैं उन्हें एक आदर्श पुरुष मानता हैं। उनके अभिनन्दनके अवसरपर उन्हें श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हुआ उनके शतायुः होने की शुभ-कामना करता हूँ। सहजता एवं धीरजको मूर्ति .श्री लखमीचंद सिंघई, एम. काम., एल. एल. बी. एडवोकेट, खुरई पण्डितजी स्वतन्त्र चिन्तक और गम्भीर विचारक हैं। "सुखी जीवनके लिये स्वतंत्र विचार होना चाहिये ।" (दार्शनिक गेटे) । स्वतंत्र विचार हेतु निष्कर्मण्यताका त्याग होना आवश्यक है, जिसे पण्डितजीने अपने जीवनमें कभी नहीं आने दिया । जीवनमें अपनी जगह न ढूंढ़ पानेवाले आदमियोंकी प्रवृत्तिको पंडितजी ने कभी फटकने नहीं दिया। पंडितजी शरूसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससे सजीव जुड़े रहे । स्वतंत्रता-संग्रामके सैनिक रहे। मैंने बहुत पाससे पंडितजीके जीवन व नियतको देखा और पहचाना है, सिद्धान्तोंसे समझौता पंडितजीने सीखा ही नहीं । बीना-इटावाका पोस्ट-आफिस पंडितजीके निवासके पास रहा आया। पंडितजीका खाता उसमें था। खाते से जालसाजीसे कुछ रुपया पोस्ट-आफिस कर्मचारियोंने हेरा-फेरी कर दिया। लम्बे समयके बाद पंडितजीको पता चला । मुझे वकालत शुरू किये करीब ३ वर्ष हुये थे, पण्डितजीने मुझे कार्यवाही विधिगत तौरसे करने हेतु कहा । मैंने उन्हें आग्रह किया कि मात्र कुछ ही रुपयोंका गड़बड़ हुआ है, न्यायालयमें समय व पैसा दोनों का भारी खर्चा होता है । आपको इतना समय कहाँ है। पण्डितजीने एक ही उत्तर दिया कि यदि हम कार्यवाही नहीं करेंगे तो यह गलत आदत न जाने कितने लोगोंको क्षति पहुँचावेगी। इसलिये मात्र छोटी रकम न देखकर प्रजातान्त्रिक प्रणालीके स्वतंत्र भारतमें न्याय व कानूनका डर बना रहे, अपनेको कार्यवाही करना है । न्यायाधीश महोदय श्री ए० के० अवस्थी थे, जिनके न्यायालयमें प्रकरण चला । साक्ष्यमें पोस्ट-आफिसके अधीक्षकको खर्चा भरना पड़ा। वह खर्चा हेरा-फेरी की गई राशिसे दोगुनेसे ज्यादा होता था, न्यायाधीश महोदयने भी पंडितजीसे प्रकरण समाप्त करने हेतु सुझाव दिया, क्योंकि प्रकरणकी विषय-वस्तु मात्र छोटी-सी राशि थी, किन्तु पंडितजीने इंकार कर दिया। केवल इसलिये कि ऐसा करने वालोंको भविष्यमें ऐसा न हो, इसके लिये ही मात्र उन्होंने कानूनी कार्यवाही चाही है। आगे चलकर जब पोस्टआफिसके संबंधित कर्मचारियोंको प्रकरणमें फसते व नौकरीसे निकाले जानेकी स्थिति देखी तो पंडितजीने क्षमा कर दिया और सारा खर्चा व राशि छोड़ दी। करीब २ वर्षतक पेशियोंमें आनेकी चिन्ता नहीं की और प्रकरण वापिस ले लिया, यह विनम्रता एवं क्षमाका गण पंडितजीमें देखा। यह घटना करीब सन् १९७२ की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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