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________________ ६० : सरस्वतो-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ विशिष्ट प्रतिभाके धनी • डॉ० शीतलचन्द्र जैन, प्राचार्य, श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर व्याकरणाचार्यजीके नामसे प्रसिद्ध पं० बंशीधरजीको भारतके जैन विद्वानोंमें उनकी स्वयंको विशिष्ट विचार शैलीके कारण एक पृथक् मूर्धन्य मनीषी विद्वान्की कोटिमें गिना जाता है । आप मात्र चारों अनुयोगोंके ही ज्ञाता नहीं है, अपितु आप स्वतन्त्र विचारक, समाज सुधारक, स्वतन्त्रता सेनानी और निर्भीक वक्ताके रूपमें भी जाने जाते हैं । सौभाग्यसे सरस्वतीके साधक-आराधक मनीषी पूज्य पण्डितजीके अभिनन्दन-ग्रन्थके सम्पादक मण्डलमें मुझे भी स्थान मिला हुआ है। अतः पण्डितजीके प्रायः सभी विधाओंसे सम्बन्धित लेख पढ़नेको मिले । उन लेखोंके पढ़नेसे मुझे कभी ऐसा आभास होने लगता था कि ऐसी विचारधारा जैन शास्त्रोंमें तो नहीं मिलती। परन्तु जब लेखको पूर्ण पढ़ करके पूज्य गुरुवर्य पं० डॉ० दरबारीलालजी कोठियासे एवं स्वयं व्याकरणाचार्यजीसे विचार-विमर्श होनेपर पूरा सिद्धान्त गले उतरने में देरी नहीं लगती थी। मेरी स्वयंकी मान्यता है कि व्याकरणाचार्यजीकी चाहे खानिया तत्त्वचर्चा हो या कार्यकरणभाव और कारकव्यवस्था आदि ग्रन्थ, सभी उनकी स्वयंको विशिष्ट विचार-शैलीसे युक्त हैं। जैसे कि पण्डित 'जैन दर्शनमें कार्यकारण भाव और कारकव्यवस्था' नामक ग्रन्थमें व्यवहारनयकी चर्चामें उन्होंने कहा है कि आगममें व्यवहारनयको अभूतार्थ कहा है परन्तु अभूतार्थका अर्थ असत्य ग्रहण करना नहीं है अपितु अभूतार्थका अर्थ है कि वह (व्यवहार) वस्तुके स्वाश्रित और अभेदात्मक स्वरूपको ग्रहण नहीं करके पराश्रित व भेदात्मक स्वरूपको ग्रहण करता है । इसलिये व्यवहारनय अभूतार्थ कहा है । इसी प्रकार पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, वाराणसी द्वारा 'सन्मतिसन्देश', वर्ष १६, अंक २ में प्रकाशित "उपादानकारण ही कार्यका नियामक होता है" इस लेखके उत्तरमें इसी पुस्तकके परिशिष्टमें जो उत्तर दिया है वह उत्तर इतना साधार एवं यक्ति-युक्त है कि उपादान और निमित्त दोनोंकी नियामकताको सिद्ध करता है। वस्तुतः पण्डितजीके सभी ग्रन्थ एवं लेख आगम एवं न्यायके विशिष्ट ग्रन्थोंके समझनेके लिये मार्गदर्शकका कार्य करते हैं। जैनदर्शनमें कार्यकारण और कारक व्यवस्था जैसी पुस्तक विश्वविद्यालयमें दर्शनशास्त्रके छात्रोंके पाठ्यक्रममें निर्धारित करने योग्य है। ऐसे विशिष्ट विचार शैलीके धनी मनीषी विद्वान् व्याकरणाचार्य हम सभी नवीन शैलीके विद्वानोंके लिये दीर्घकाल तक मार्गदर्शक बने रहें इस भावनाके साथ मैं उनके दीर्घ जीवनकी कामना करता हूँ। मंगल कामना •शाह खूबचन्द्र जैन, बीना मुझे इस बातसे अत्यन्त प्रसन्नता है कि पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका अभिनन्दन होने जा रहा । आठ वर्षकी छोटी आयमें न उनके ऊपर माँका साया था और न ही पिताका। तभीसे उनके जीवन में संघर्षों की शुरुआत हुई और आज तक संघर्ष किये जा रहे हैं। आदर्शकी बात यह है कि उनका संघर्ष स्वयं केन्द्रित कभी नहीं रहा। सन् १९४२ के राष्ट्रीय आन्दोलनमें, दस्सा पूजाधिकारके मामलेमें. गजरथ विरोधी आन्दोलनमें तथा कई राष्ट्रीय तथा सामाजिक संस्थाओंमें आपने सक्रिय भूमिका निभाई । आज भी वे अपनी लेखनीसे आगमानुकूल जिनवाणीकी गहराई नापनेका प्रयास किये जा रहे हैं । वे हमारे बहनोई होनेके कारण वैसे भी अभिनन्दनीय हैं। समस्त समाजके द्वारा अभिनन्दन किया जाना उनके द्वारा अबतक किये गये संघर्षों एवं जिनवाणीकी सेवाका परिणाम है। वे शतायु हों तथा अपने लक्ष्यको प्राप्त करें यही मंगल कामना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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