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________________ ९ । आगम से आपको प्यार यथा है देश-प्रेम भी वैसा हो । तन से तनकर चलकर दिये जेल नहिं किया प्यार था तन से भी ॥ है राष्ट्र प्राणप्रिय इन्हें सतत् प्यारा है इनको नहीं चाम । तन-मन से सेवा करते हैं आवश्यक हो तो देत दाम ॥ १० वैशिष्टय आपके जीवन का शिक्षा न जीविका का साधन । व्यवसाय बुद्धि के आगे नत लक्ष्मी करती नित आराधन ।। लक्ष्मीपति हैं पर विष्णु नहीं बिनु मुरली के हैं कृष्ण, राम । बीना है कर्मभूमि इनकी इनके घर लक्ष्मी का विराम । १-७ Jain Education International १ / आशीवंचन, संस्मरण, शुभकामनाएँ ४५ ११ श्रुतदेवी और लक्ष्मी का वरदान इन्हें ही प्राप्त हुआ । भू पर अनेक विद्वान् किन्तु विरलों का यों संयोग हुआ || विधि का ही कहएि यह विधान जग में जो कि है आज नाम । श्रीमन्त और धीमन्त सभी आकर करते सविनय प्रणाम ॥ १२ ये सरस्वती के वरदपुत्र हित - मितभाषी हैं ज्यों चन्दन | अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित कर हम करते विद्वत्-अभिनन्दन ॥ ये सत्य और शिव सुन्दर भी इनको मेरे साष्टांग प्रणाम । 'सुमन' रहे सुख भरे जगत में मिलता रहे इन्हें आराम ॥ विनय सुमन वेद्य प्रभुदयाल कासलीवाल, भिषगाचार्य, दिन ही ॥ कभी । न जयपुर वंशीधर है नाम वाँसुरी तुमने बजाई कभी नहीं । किन्तु वाँसुरी तान सुनी जो बाजी तुम्हारी प्रति बंशीधर गोपाल कहाते गो तुमने पाली लेकिन जिनवाणी दोहन कर ज्ञानामृत तुमने नागदमन बंशीधर कौना मिध्यात्व दमन कर अज्ञान कंस के नाशक बन जिनवाणी यश तत्त्वज्ञान तुमने पाकर साहित्य रचा जिससे निश्चय व्यवहार उभय उपयोगी है पाया ही ॥ तुम हो जी । फैलाया जी ।। क्रम - अक्रम पर्यायों का विश्लेषण का विश्लेषण तुमने तुमने ज्ञानेन्दु बने । मन्तव्य बने । कीना कौना है। पिछाना है । हे बंशीधर बिन अक्षर की वंशी से तुम्हें हे सरस्वती के वरद पुत्र मैं करूँ कामना प्रतिदिन ही । शत शत वर्षों की आयु पा तुम वास करो अब निज में ही ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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