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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : ३७ अध्ययन किया । उनके अध्ययनका परिचय उनके द्वारा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें लिखित सामयिक, ताकिक शोषपूर्ण लेखोंसे मिलता है। पंडितजी एक ऐसे दीपक हैं, जिन्होंने एक साधारण परिवारमें जन्म लेकर अपने पूरे परिवारको पंडित बना दिया । 'दीपक-से-दीपक जलता है' यह उक्ति उनके जीवनसे चरितार्थ हुई। उनके भतीजे पं० बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री अभी कुछ ही दिन पूर्व दिवंगत हुए हैं। वे तो स्वर्गीय हो गये परन्तु षट् खंडागम-धवल सिद्धान्त जैसे गहन आगम ग्रन्थका सम्पादन एवं अनुवाद करके अपनी अक्षय कीर्तिको भूतलपर छोड़ गये। पंडितजीके ही दुसरे भतीजे पं० दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य जैन समाजके अब एक मात्र न्यायके विश्रुत विद्वान् हैं । जैन समाजमें सैद्धान्तिक मान्यताओंको लेकर उठे हुए विवादके बादलोंको पं. बंशीधरजीने 'जनतत्त्व मीमांसा की मीमांसा' जैसे स्पष्ट ग्रन्थ की रचना कर सन्मार्ग प्रकाशित किया है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि बुन्देलखंड जैसे पिछड़े और गरीब प्रान्तने ही जैनधर्मके मूर्धन्य बहु पंडितोंको जन्म दिया है जिनके ज्ञानसूर्य के प्रकाशसे पूरे भारतका जैन समाज उपकृत हआ है। पंडितजीसे मिलनेका मुझे कई बार अवसर मिला है। उनके पांडित्यसे तो मैं प्रभावित हुआ ही, लेकिन उनकी सादगीने भी मेरे मनपर अमिट छाप छोड़ी है । एक सम्मेलनमें हम लोग धर्मशालामें ठहरे हुए थे। शामको पंडितजी अंथऊ कर रहे थे। जबतक पंडितजीने शामके भोजनमें मुझे शामिल नहीं कर लिया तबतक वे नही माने । पंडितजीको दो हई पूड़ियों और सागका स्वाद आज भी मेरे स्मरणमें है। पंडितजी दीर्घायु हों और जैन वाङ्मयकी निरन्तर सेवा करते रहें, यही कामना है। साले को भौआके लिए भावाञ्जलि •शाह प्रेमचन्द्र जैन, बीना हमारे 'भौआ के साथ मेरे बचपनकी कुछ यादें जुड़ी है, जिनसे भौआका सम्बन्ध है और मेरा भी। बुन्देलखण्डमें बहनोईको 'भौआ' शब्दसे सम्बोधन और आदर व्यक्त किया जाता है। हमारे बड़े दद्दा श्री शाह मौजीलालजीके दामाद ही हमारे भौआ हैं और वे हैं लब्ध प्रतिष्ठ एवं ख्यातिप्राप्त जैन समाजके शीर्ष विद्वान् पण्डित श्री बंशीधरजी व्याकरणाचार्य । हम-सब एक ही मकानमें रहनेके कारण उगते सूरजसे डूबने तक और डूबनेसे उगने तक छोटी-बड़ी बातों, घटनाओं और निकटस्थ जोवनसे जुड़े हैं। मेरे बचपनकी यात्रा और भौआके राजनैतिक, सामाजिक यक जीवनके एक समचे व्यक्तित्वकी यात्रा मेरी दृष्टि में है जो बढ़ती उमरके साथ भली-बिसरी झलकियोंको फिर याद करनेसे स्फति देती है, प्रफुल्लता और प्रेरणा देती है। कुछ-न-कुछ छाप, उनका प्रभाव मेरे जीवनपर पड़ा है । निकटता-समीपता और संगतका असर जरूर होता है, यही मेरा सौभाग्य है । ___ हाँ, तो मैं ६-७ सालका रहा हूँगा। खेलता फिरता और दौड़ लगाता। घरके भीतर हमजोलीके भानजे-भानजी सनतकुमार और बिमलाके साथ खेलते । घरमें खंटी पर टॅगी बिगलको उतारते और फूंकते । बिगुल बजाते और कंधेपर टांगनेका शौक करते । बच्चे थे बडोंकी नकल करते, कभी नेता बनते, कभी मिलिट्रीवाले बनते । बिगुल हमें एक खिलौना था । भौआका घर उन दिनों बीनाकी राजनैतिक गतिविधियोंका अड़ा था। सारे कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेता इकट्ठे होते । सन् १९४२ की क्रांति और भौआकी बीना स्टेशन पर गिरफ्तारी मेरी बचपनी आँखोंमें खेल सी समाई। स्टेशनसे घर तक नहीं आ पाये कि उन्हें स्टेशन पर ही गिरफ्तार कर लिया गया। हमें 'बेन'के रोनेकी आवाज मिलो। बुन्देलखण्डमें बहनको 'बेन' या 'जिजी' शब्दसे सम्बोधित किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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