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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : ३३ निरभिमान व्यक्तित्व .५० भैया शास्त्री आयुर्वेदाचार्य, शिवपुरी ० शान्तिदेवी शास्त्री, शिवपुरी एवं उनके परिवारके समस्त सदस्यगण इतिहासके पष्ठोंको पलटकर देखें तो आचार्य परम्परा तथा पण्डित परम्परा कुन्दकुन्द स्वामीसे लेकर आज तक अविच्छिन्न रूपसे चली आ रही है। आचार्य परम्परामें उनकी स्तुति, शिलाखण्डों या ताम्रपत्रों पर प्रशस्तिके रूप में उत्कीर्ण की जाती रही । लगभग ४०-५० वर्षासे विद्वानों व श्रीमानोंके सम्मानमें-अभिनन्दन या स्मृतिग्रन्थ प्रकाशित कर अभिनन्दन परम्पराका उदय हुआ जो अब द्रुतगतिसे समाजके सामने गतिवान होता जा रहा । विद्वानोंके कृतित्व एवं व्यक्तित्वके प्रति सम्मान ज्ञापित करनेकी परम्परा एक स्वच्छ एवं मानद परम्पराके रूप में अनुकरणीय बनती जा रही है, इस परम्पराके निर्वाहमें आज तक लगभग पचास मनियों, विद्वानोंका या श्रेष्ठ वर्गका सम्मान किया जा चुका है उनका यह सम्मान इतिहासमें अमर रहेगा। इस गौरवपूर्ण परम्पराके उपक्रममें इसी दशकमें चार पाँच विद्वानोंका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जा चुकी है। कुछ विद्वानोंके अभिनन्दनकी बात सुनी जा रही है। कुछ विद्वानोंके अभिनन्दन ग्रन्थ अधूरे है, कुछ के प्रेसमें, कुछ पूर्ण होकर सामने आ रहे है इसी शृंखलामें प्रस्तुत अभिनन्दनग्रन्थ पाठकोंके हाथ में है। वस्तुतः सरस्वती और लक्ष्मीके वरदपुत्र श्री बंशीधरजी व्याकरणाचार्य जिस गरिमाके उत्कृष्ट स्थान पर हैं वे स्वयं अपने में एक ही हैं, उनका व्यक्तित्व और कतत्व एक अनूठा और अनोखा है। पं० श्री स्वतन्त्र व्यवसायी होकर सुधारकके रूप में अपने विचारोंके स्वतन्त्र रहे हैं यही कारण है कि गजरथ विरोधी आन्दोलन, राष्ट्रीय आन्दोलन, जैन तत्त्वमीमांसाकी मीमांसा बड़ी निडरतासे तलस्पर्शी-तर्कपूर्ण रूपसे लिखी गई। उनका जीवन समाज सुधारकी दिशा बोधमें बीता है, निर्भीकतासे समाजमें व्याप्त कुरीतियोंके उखाड़ फेंकनेमें शंखनाद किया है तो इन्हीं मनीषी विद्वानने किया । “विद्वान् समाजका दर्शक होता है" इस तथ्यको सिद्ध कर दिया है। उनकी मधुर वाणीमें सरलता है मन और मस्तिष्कमें साहस है। उनमें देवशास्त्र गुरुके प्रति अटूट श्रद्धा है, भक्ति है। अप्रतिहत प्रतिभा उनकी संगिनी है। ऐसे सिद्धान्ताचार्य पण्डितवर्य जो स्वाभिमानकी गरिमासे गरिष्ठ एवं वरिष्ठ हैं उनके प्रति अनेक शुभ कामनाएँ हैं कि वे शतायु होकर समाजको दिशा बोध करते रहें। मेरी उन्हें शुभ मंगल कामनाएँ •पण्डित मुन्नालाल जैन, शास्त्री संस्कृत-प्रवक्ता, श्री तारणतरण जैन उ० मा० वि०, गंजबासौदा श्रद्धेय परम-पूज्य पण्डित बंशीवरजी व्याकरणाचार्य बीनाका जीवन-चरित्र प्रशंसनीय ही नहीं, अपितु अनुकरणीय है। लक्ष्मी एवं सरस्वती दोनोंका योग विशेष पुण्यसे ही मिलता है । पर आपमें दोनोंकी कृपा है। प्राकृतिक सौम्यता एवं मुस्कराहट अन्तरकी भद्रता तथा मन्द कवायके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । 'सत्वेष मैत्री गणिषु प्रमोदं' वाली बात आपके जीवनमें चरितार्थ दिखती है। अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समितिने आपके अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशनका जो निर्णय लिया है एवं डॉ० दरबारीलालजी कोठिया को इसका प्रधान सम्पादक बनाया गया है। मैं अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन एवं पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य के दीर्घ आयु होने की मंगल कामना करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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