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________________ २. जैनदर्शनमें प्रमाण और नय ३. ज्ञानके प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंका आधार ४. जैनदर्शन में नयवाद ५. अनेकान्तवाद और स्याद्वाद ६. स्याद्वाद दर्शन और उसके उपयोगका अभाव ७. दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोगका विश्लेषण ८. जैनदर्शन में दर्शनोपयोगका स्थान ९. जैनदर्शन में वस्तुका स्वरूप १०. जैनदर्शन में सप्ततत्त्व और षद्रव्य ११. अर्थ में भूल और उसका समाधान साहित्य और इतिहास १. वीराष्टकम् : समस्या कान्ता कटाक्षाक्षतः (क्षताः) । २. समयसारकी रचनामें आचार्य कुन्दकुन्दकी दृष्टि ३. तत्त्वार्थसूत्रका महत्त्व ४. जैन व्याकरणकी विशेषताएँ ५. षट्खण्डागमके 'संजद' पद पर विमर्श ६. सांस्कृतिक सुरक्षाकी उपादेयता ७. जैन संस्कृति और तत्त्वज्ञान ८. युगधर्म बननेका अधिकारी कौन ? ९. ऋषभदेवसे वर्तमान तक जैनधर्मकी स्थिति Jain Education International परिशिष्ट : ३५ : प्राक्-कथन, डॉ० कोठियाजी द्वारा संपादित न्यायदीपिकाका प्रकाशन, १९४५ । : ज्ञानके प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंका आधार, ज्ञानोदय, जून १९५१ । : जैन दर्शन में नयवाद, गुरु गोपालदास वरैया स्मृति ग्रंथ १९६७ । : वीरशासनके मूलतत्त्व अनेकान्तवाद और स्याद्वाद, अनेकान्त वर्ष - २ किरण- १, १९३८ । : स्याद्वादका जैनधर्ममें स्थान व उसके क्रियात्मक उपयोगका अभाव, जैनदर्शन १९ सितम्बर १९३४ ॥ : दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोगका विश्लेषण-आचार्य शिवसागर स्मृतिग्रन्थ वी० नि० सं० २४९९ । : जैनदर्शन में दर्शनोपयोगका स्थान, ज्ञानोदय, अप्रैल १९५१ । : एक दार्शनिक विश्लेषण - जैनदर्शनकी मान्यतामें वस्तु अनन्तधर्मात्मक भी है और अनेकान्तात्मक भी है, दिव्यध्वनि वर्ष - १ अंक ९, १९६६ । : जैनसंस्कृतिकी सप्तत्त्व और षद्रव्य व्यवस्थापर प्रकाश, अनेकान्त वर्ष - ८, किरण ४, ५, १९४६ । : अर्थ में भूल ( अप्रकाशित ) : वीराष्टकम् : समस्या - कान्ताकटाक्षाक्षतः (क्षताः) । दिगम्बर जैन, अंक १-२ | : समयसार की रचनामें आचार्य कुन्दकुन्दकी दृष्टि, महावीर जयन्ती स्मारिका १९८८ । अनेकान्त वर्ष - १२ किरण-४ : तत्त्वार्थ सूत्रका महत्त्व, सितम्बर १९५३ । : जैन व्याकरणमें इतर व्याकरणोंसे विशेषता व उसका महत्त्व, जैन सिद्धान्त भास्कर, वर्ष ११ अंक - ४ वी० नि० सं० २४५७ । सनातन जैन : पटखण्डागमकी सत्प्ररूपणाका ९३वाँ सूत्र, बुलन्दशहर, अक्तूबर १९४५ । : अभिभाषण सिवनी विद्वत्परिषद अधिवेशन सन् १९६५ । : अभिभाषण श्रावस्ती विद्वत्परिषद अधिवेशन ? : युगधर्मं बनने का अधिकारी कौन, खण्डेलवाल हितेच्छु युगधर्मांक वर्ष २६, अंक १, २ । : जैन मान्यतामें धर्मका आदि समय और उसकी मर्यादा, प्रेमीअभिनन्दन ग्रन्थ १९४६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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