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________________ ३० : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ आदर्श विद्वान् .श्री नेमिचन्द्र जैन, प्राचार्य गुरुकुल, खुरई पंडित बंशीधर जी जैनधर्मके ज्ञाता-भारतीय विद्वानोंमें मर्धन्य है। इन्होंने काशीस्थ स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालयमें रहकर व्याकरण शास्त्रका गहन अध्ययन किया और व्याकरणाचार्यको उच्चतम उपाधि प्राप्त की । उच्चतम शिक्षा प्राप्त करनेके बाद अधिकांश विद्वान समाज या शासनके आथित हो जाते है। परन्तु पंडितजीने न समाजपर अवलम्बित रहे और न शासनपर । स्वयंका कपड़ेका व्यापार करते हुए सम्पन्नता अजित की तथा सामाजिक प्रतिष्ठा भी। इन्होंने व्यापार करते हुए भी निरन्तर स्वाध्याय करते हुए कई ग्रन्थों की रचना की है जो वर्तमानमें पठनीय, विवेचनीय एवं विचारणीय है। पंडितजीका अगाध पाण्डित्य सम्पूर्ण भारतके विद्वानों द्वारा प्रशंसित है। पंडितजी अप्रतिम प्रतिभाके धनी, स्वावलम्बन पूर्ण जीवन जीनेवाले, स्वतन्त्र विचारक श्रेष्ठ लेखक एवं समालोचक हैं। उनका जीवन वस्तुतः आदर्श एवं अनुकरणीय है । वे शतायु हों, ऐसी हार्दिक मंगल कामना है । सरस्वती के अनुरागी .पं. जम्बूप्रसाद शास्त्री, मड़ावरा आपके गुणों एवं सरस्वतीकी महान सेवारती देखकर जो समाज एवं विद्वतगणोंने आपके अभिनन्दन करनेकी योजना बनाई है, सो अति श्लाघ्य है । आपने जो जैनोंमें भी एकान्तवादका गलत प्रचार हो रहा है । उसे अपने साहित्य द्वारा जैसे निश्चय-व्यवहार, निमित्त, उपादान व क्रमबद्ध पर्याय आ व उपयोगिताको सिद्ध किया है। और फैले हए अज्ञान अन्धकारको दूर करनेका प्रयत्न किया है तथा आपने अपने जीवन में-विधा एवं अर्थका अच्छी तरहसे संचय किया है। इसी तरहसे आपने विद्या, एवं अर्थका दान भी अच्छी तरहसे किया। यह आपकी महानता है। यह सरस्वती और लक्ष्मीका एक स्थानमें सम्बन्ध जोड़ा इसलिए आपने जो साहित्य लेखन किया और उसका अपने ही द्वारा स्थापित किये फण्डसे प्रकाशित कराया। इससे आपको साहित्य प्रकाशनके लिये परमखापेक्षी नहीं बनना पड़ा, स्वतंत्रतासे आपने समाजकी और धर्मकी जो सेवाएं की हैं वह सदा स्मरणीय रहेंगी। आपके गुणोंकी क्या प्रशंसा को जाय । मनुष्य गुणोंसे ही उन्नत होता है उच्च आसन पर बैठनेसे नहीं, आपका हमारा सम्बन्ध चिरकालसे है अनेक जगह वाचनाओंमें मिलनेसे, अनेक तत्त्वचर्चा आदि करनेका भी शुभ अवसर मिला । आपका हमारे ऊपर घनिष्ठ स्नेह है और हमारी भी आपके प्रति अति-श्रद्धा । ऐसे माननीय सरस्वतीके अनुरागी, वरद-पुत्रके प्रति सविनय विनयाञ्जली समर्पित और आरोग्यता सहित चिरायु होनेको कामना करता हूँ। देश श्रुत और समाजसेवी .श्रीमती पुष्पलता 'नाहर' बाँसातारखेड़ा आदरणीय पं० बंशीधर जी शास्त्री बीना देशप्रेम, श्रुतज्ञान और समाजसेवाके अनुपम आगार है। उत्तम व्यवसायी होकर भी आपके द्वाराकी गयी तसेवा इलाध्य है। आगमके आप मर्मज्ञ विद्वान् हैं । विद्वानोंका अभिनन्दन समाजका अभिनन्दन है। उनकी सेवाओंको ध्यानमें रखते हुए उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किये जानेकी योजना स्तुत्य एवं सराहनीय है। चौरासी वर्षीय वयोवृद्ध विद्वान् पं० बंशीधर जी शास्त्रीके अभिनन्दन समारोहके अवसर यहाँकी महिला-समाज कामना करती है कि शास्त्रीजी अधिकसे अधिक आयु प्राप्त करें, स्वस्थ रहें और स्वस्थ रहकर चौरासीके चक्रसे निवृत्त हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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