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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाए २७ एक कोने में इच्छा जरूर दुबकी रही कि जैन संस्कृतिका जो संग्रह उनके पास है उसका अध्ययन कहें। लेकिन वह इच्छा पूरी नहीं हुयी । नानाजीके सामने तो कुछ समझ ही नहीं आता था कि उनसे किस विषयमें बात करूँ ? आते-जाते उनकी किताबोंपरसे धूळ झटकारती रही, लेकिन पृष्ठ पलटनेका प्रयत्न ही नहीं किया। मेरी बेटी पूर्णिमाने एक दिन मुझसे पूछा-संस्कृत क्या होती है माँ ?" उसके उत्तरमें मेरे पास सिर्फ इतने शब्द थे कि बेटा मेरे नानाजी संस्कृतके बहुत बड़े विद्वान है उसका प्रश्न और मेरा अधूरा उत्तर कचोटता रहता है कि नानाजीसे हम लोगोंने क्या सीखा ? अपना समय कितना व्यर्थं किया ? सचमुच ये समय के साथ-साथ ही चलते रहे और आज भी इस उम्र में भी उसी तरह गतिशील है अपने ध्येय की ओर । उन्हें मेरे श्रद्धा पूर्ण अनन्तशः नमन । यशस्वी सारस्वत • डॉ० आर० सी० जैन, प्रवाचक, सांख्यिकी विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन सरस्वती वरदपुत्र पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य के सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह प्रसन्नताका विषय है। समाजका यह कर्त्तव्य है कि वह समय- समयपर अपने विद्वानोंका अभिनन्दन कर उनका उत्साहवर्धन करें। पंडित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य राष्ट्र एवं समाजके एक यशस्वी और साहित्योपासक सारस्वत हैं। मैं उनके दीर्घ जीवनकी मंगल कामना करता हूँ । मौन साधक • श्री मिश्रीलाल जैन एडवोकेट, गुना जैनदर्शनके मनीषी विद्वान श्रद्वेय पंडित बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका स्नेह, आशीर्वाद प्राप्त करने और उनके प्रवचन सुननेका मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । जैन दर्शनके विद्वानोंमें आपका विशिष्ट स्थान है आपका ज्ञान असीम और चिन्तन मौलिक है। जीवन सरल, सात्विक और निश्छल है। पंडितजी परम स्वाभिमानी हैं, पर उनमें अहंकार की गंध तक नहीं है । जैन दर्शनके विद्वानोंकी वाद-सी आ गई है। मूलसे अपरिचित विद्वानोंने जैन दर्शनको इतना मथ दिया है कि नवनीत खोजनेपर भी नहीं मिलता। मैं आदि तीर्थकर ऋषभदेव भगवान से पंडितजीके शतायु होनेकी कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि श्रद्धय पंडितजो अपनी मौन साधनाका परित्याग कर अपने अमूल्य ज्ञानसे भारतीय समाज और संस्कृतिको उपकृत करने की अनुकम्पा करेंगे। असाधारण मेधावी • डॉ० नरेन्द्रकुमार जैन, प्रवक्ता संस्कृत, राजकीय महाविद्यालय जक्खिनी, वाराणसी आदरणीय पं० वंशीधर जी व्याकरणाचार्य संस्कृत व्याकरणके वेसा होने के साथ जैन आध्यात्म, न्याय और दर्शनके उन रहस्योंके ज्ञाता और चिन्तक हैं, जिनको समझने में सामान्य पंडितोंकी मेधा काम नहीं करती । खानिया तत्त्वचर्चा-समीक्षा, निश्चय और व्यवहार जैसे गूढ़ - तत्त्वोंके रहस्यको खोलने वाले ग्रन्थोंका प्रणयन करके निःसन्देह आपने मूल जैन आम्नायके वाङ्मयके सिद्धान्तोंकी सुरक्षा करनेमें महनीय योगदान किया है । आप सरस्वती और लक्ष्मी दोनोंके वरदपुत्र हैं । आप किसी भी प्रलोभनके सामने झुके नहीं और आजीवन अपने आर्षसम्मत चिन्तनका परिचय देते आ रहे हैं। बीसवीं शतीके समीक्षक विद्वान यदि उनका अनुकरण करें तो उन्हें दिशा मिल सकती है । मैं उनके दीर्घायुष्य की कामना करता हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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