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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएँ: ७ जिनवाणी - माता निष्पृह चिन्तकके रूपमें अपना जीवन जिया । खानिया तत्त्वचर्चा में आपने जनदर्शन और जैन सिद्धान्तका जिस प्रकार गम्भीर विचारकके रूपमें स्वतन्त्र चिन्तन दिया उसने विद्वानोंको सोचनेके लिये नई दिशा प्रदान की । जो भ्रमित हो रहे थे उन्हें सही राह बताई । पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णीने बुन्देलखण्डको जैन वाङ्मयके अनेकों विद्वान् दिये। आज समाजमें जो सर्वाङ्ग पण्डितोंकी कमी महसूसकी जा रही है व उनके स्थानपर साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक शिक्षणशिविरोंमें भाषण सुनकर कथित पण्डित निर्मित हुए हैं, उन्होंने धर्म एवं वाङ्मयका जितना अहित किया है, शताब्दियोंसे उतना नहीं हुआ । पूज्य पण्डित बंशीधरजी वर्तमान युगके स्वतन्त्र चिन्तक, जिनकी कथनी व करनी में कोई भेद नहीं, हमारी अपूर्वनिधि हैं । उनका अभिनन्दन करके विद्वत्जन एवं समाज अपना ऋण हलका कर रहा है । सम्पूर्ण समाज पण्डितजीको हृदयसे नमन करता 1 सेवा ही जिनका लक्ष्य है ● श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दूका, अध्यक्ष, श्री दि० जैन अ० क्षेत्र श्रीमहावीरजी पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका नाम जैन समाज, दर्शन, साहित्य के क्षेत्र में एक जाना-माना / सुपरिचित नाम है | व्यवसायी होते हुए भी आप साहित्य और समाजकी सेवामें जिस प्रकार जुड़े हुए हैं वह श्लाघनीय है । सच तो यह है कि प्रारम्भसे ही "सेवा" आपके जीवनका एक अभिन्न अंग रही है, देश सेवा, समाज सेवा, साहित्य सेवा ये ही तो लक्ष्य / उद्धेश्य रहे हैं आपके जीवनके । अध्ययन-मनन- चिन्तन-लेखन में आप आज भी सक्रिय एवं संलग्न हैं । ऐसे कर्मठ प्रेरणास्पद व्यक्तित्व के प्रति मैं अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करता हुआ उनके स्वस्थ और सक्रिय दीर्घ जीवनकी कामना करता हूँ । गार्हस्थ्य, संन्यास और विद्वत्ताको त्रिवेणी • राय देवेन्द्रप्रसाद जैन, एडवोकेट, गोरखपुर मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि जीवनपर्यन्त जैनसमाज तथा जनसाहित्यकी सेवा करनेवाले स्वनामधन्य सिद्धान्ताचार्य पंडित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य, शास्त्री एवं न्यायतीर्थकी सेवाओंको स्मरण करने और उनके प्रति आभार ज्ञापनार्थ अभिनन्दन ग्रन्थका प्रकाशन होने जा रहा है। श्रद्धेय पंडितजीका नाम तो मैंने बहुत सुन रखा था पर उनके दर्शनका सौभाग्य मुझे डॉ० दरबारीलालजी कोठियाके अभिनन्दन ग्रंथ समारोहके समय हुआ । पंडितजीसे बात करनेपर में उनकी विद्वत्ता, गहन अध्ययन, जैनदर्शनमें उनकी गहरी पैठ देखकर आश्चर्यचकित रह गया । दुसरी बार पंडितजीके घरपर दो दिन ठहरनेका सौभाग्य मिलनेपर उनके प्राप्त हुआ। गृहस्थ जीवन, वानप्रस्थ तथा संन्यास तीनोंका आश्चर्यजनक समिक्षण ही प्रभावित हुआ । उनकी दिनचर्या प्रातः ३ बजेसे प्रारम्भ होती है । अध्ययन, चिन्तन लेखनके प्रति उनका समर्पण बड़ा प्रेरणादायक रहा । गृहस्थ जीवन में ऐसी रुचि तथा अध्यात्मसे प्रेम दोनों गुण एक साथ बहुत कम देखनेको मिलते हैं । पंडितजीका मधुर भाषण तथा सादा जीवन अनुकरणीय है । मेरे जैसे सामान्यजनको पंडितजाने जैनदर्शन जैसे गूढ़ विषयको सरल तथा बोधगम्य भाषामें थोड़े समय में ही ग्राह्य करा दिया । यह उनकी विलक्षणता है । निकट साहचर्यका अवसर पंडितजी में देखकर बहुत अन्तमें पंडितजी के दीर्घायु होनेकी हार्दिक कामना करते हुए पुनः प्रसन्नता व्यक्त करना चाहता हूँ कि पंडितजो जैसे महान् धर्मसेवी, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, साहित्यिक तथा समाजसेवीकी सेवाओं के प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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