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________________ राष्ट्रीय स्तरके मनीषीका अभिनन्दन • साहु अशोक कुमार जैन, अध्यक्ष, अ० भा० दि० जैन तीर्थरक्षा कमेटी १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएँ: ५ यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि आदरणीय पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका राष्ट्रीय स्तरपर सम्मान किया जा रहा है और इस अवसरपर अभिनन्दन ग्रन्थके प्रकाशन की भी योजना है । निस्सन्देह पं० बंशीधरजी जैन समाजके मूर्धन्य विद्वानोंमेंसे हैं। देश, समाज और जैन वाङ्मयके प्रति उनकी सेवाएँ अमूल्य हैं । समाजका यह गौरव है कि उसे पं० बंशीधरजी जैसे महान् मनीषी, चिन्तक और विचारकका सान्निध्य प्राप्त है । उनके व्यक्तित्त्व और कृतित्त्वकी जितनी भी सराहना की जाय, थोड़ी है । इस महान् योजनाके साथ आपने मुझे भी जोड़ा है, इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ। मेरी कामना है कि आदरणीय पण्डितजी चिरायु हों तथा समाज उनके ज्ञानसे निरन्तर लाभान्वित होता रहे । पण्डितजीके प्रति मेरी आदरपूर्ण विनयांजलि । समारोह एवं अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन योजनाकी पूर्ण सफलताकी शुभ कामनाओंके साथ । मूल आम्नायके संरक्षक विद्वान् • श्री निर्मलकुमार जैन सेठी, अध्यक्ष, अ० भा० दि० जैन महासभा मुझे जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि जैन आगमके महान् विद्वान व मूल आम्नायको सुरक्षित रखनेकी आनमें विद्वत् वर्ग में जो भावसे ज्यादा चिन्ता है ऐसे महान् व्याकरणाचार्य व जैन संस्कृतिके उन्नायक पण्डित बंशीधरजीको समाजने अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करनेका निश्चय किया है यह महासभा के लिये अत्यन्त ही प्रसन्नता की बात है। सच तो यह है कि महासभाको आगे बढ़कर दो दशकोंके पहले ही पण्डितजीको यह आदर देना चाहिये था । वे चिरायु हों, यही कामना है । सरस्वतीके भण्डारको भरते रहें • श्री डालचन्द्र जैन, सांसद तथा अध्यक्ष, अ० भा० दि० जैन परिषद सरस्वती वरदपुत्र पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य जैन समाजके ख्याति प्राप्त विद्वान् हैं । उनकी अविरल सेवाओंके फलस्वरूप अभिनन्दन ग्रन्थका प्रकाशन रहा है । यह समाजको गौरवकी बात है । आदरणीय पण्डितजी जैनदर्शन और जैन सिद्धान्तके अधिकारी विद्वान तो हैं ही लेखक, ग्रन्थकार, सफल संपादक और समाज सेवी व्यक्तित्व तथा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी हैं । वे सदैव समाज एवं संस्थाओं से साबद्ध रहे हैं और इस वृद्धावस्था में भी चिन्तन और लेखनकी दिशा में सतत संलग्न हैं । श्री वीरप्रभुसे प्रार्थना है कि वह श्रद्धेय पण्डितजीको स्वस्थ जीवन और दीर्घायु प्रदान करें, ताकि वह सरस्वती भण्डारको भरते रहें । मैं इस प्रयासकी सफलताकी कामना करता हूँ । कर्मठ जिनवाणी सेवक • श्री निर्मलचन्द सोनी, अजमेर अभिनन्दन समारोह समितिने जैन विद्वज्जगत्के कर्मठ जिनवाणी सेवक श्री सरस्वती पुत्र पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्यको उनकी ज्ञानाराधनाके उपलक्षमें अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण करनेका उपक्रम किया हैं वह अत्यन्त उपयुक्त एवं सराहनीय है । आगम सेवकोंका समाज जो भी सम्मान करे वह थोड़ा है । १-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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