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________________ १२८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ (लघुक्षणी) कहलाते हैं व चार अन्तर्गत श्रेणियोंमें विभक्त है। इनका सम्मान प्रति पीढ़ी बढ़ता है व कालान्तरमें वे सामान्य परवारोंके समान हो जाते हैं। इसी जातिमें ई० १४४८-१४९५ में तारणस्वामी हुए हैं। परवारोंमें जो तारणपंथी हुए वे समैय्या या चरणागरे कहलाते हैं । ये दसा-बीसामें बँटे हैं। इनमें व सामान्य परवारों में अनुलोम सम्बन्ध रहे हैं। १६ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, इनमें व गोलापूर्वोमें भोजनका सम्बन्ध रहा है व कभी-कभी विवाह सम्बन्ध भी होता रहा है। विवाह आदिकी परम्पराओंमें गोलापूणे व परवारोंमें कुछ अन्तर है, पर अधिकतर रीति-रिवाज एकसे हैं । परवार कई अन्य जैन जातियों (अग्रवाल, गोलापूर्व, गोलालारे से अधिक गौरवर्ण होते हैं। नेमा जातिका भोजन सम्बन्ध गोलापूर्वोके साथ लिखा गया है ।१६ यह जाति बुन्देलखण्डमें कुछ शताब्दियोंसे है, पर प्राचीन शिलालेखोंमें इसका उल्लेख नहीं है। यह जाति मालवा, राजस्थान, यहाँतक कि गुजरातमें भी बसी है। हो सकता है यह मालवामें निमाड़से निकली हो। कई पीढ़ियों पहले बुन्देलखण्डके पास कई नेमा परिवार जैन थे पर अब क्रमशः वैष्णव हो गये है। दिगंबर जैन नेमा अधिकतर विदर्भमें कारंजालाड, खोलापुर व नांदगांव (खण्डेश्वर) में बसे हैं ।१४ यति श्रीपालचन्द्रके अनुसार इनका मूलस्थान हरिश्चन्द्रपुरी नामक कोई नगर रहा है । ___ असाटी बुन्देलखण्डकी ही बनिया जाति है जो मूलतः टीकमगढ़ जिलेमें बसती थी। इनके प्राचीन उल्लेख नहीं मिले है, इनके पूर्वजोंको किसान माना गया है।६ सम्भवतः इनका उद्भव गुजराती पटेलों (पाटीदार)३° की तरह हुआ हो जो अब क्रमशः किसानसे बनिया होते जा रहे हैं । असाटी जैन सन् १९११ में कुछ गाँवोंमें बसते थे, ये अब भी जैन है या नहीं, कहा नहीं जा सकता। क्षुल्लक (गणेशप्रसाद वर्णीजी इसी जातिके थे। सन्दर्भ-सूची ३१. यशवन्त कुमार मलैया, "शोधकण'', अनेकान्त । २५. यशवन्त कुमार मलैया, “गोलापूर्व जाति पर विचार", अनेकांत, वर्ष २२, अं० २, जून १९७२, पृष्ठ ६८-७२। १७. यशवन्त कुमार मलैया, "वर्धमान पुराणके सोलहवें अधिकार पर विचार", अनेकांत । 10. M. A. Sherring, Hindu Tribes and Castes as Represented in Banares, Thurber and Co., 1872. १४. श्री अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन डायरेक्टरी, प्र० ठाकुरदास भगवानदास जवेरी, १९१४ । १५. श्री अखिल भारतवर्षीय दि० जै० गोलापूर्व डायरेक्टरी, प्र० मोहनलाल जैन काव्यतीर्थ । २०. नारायण प्रसाद मिश्र, कान्यकुब्ज वंशावली, प्र० श्री वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई, १९५९ । ३. हरिकृष्ण शास्त्री, ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड, प्र० श्री वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई, १९५४ । २७. पं० गोविन्ददास जैन कोठिया न्यायतीर्थ, प्राचीन शिलालेख, श्री १०८ दि० ज० अतिशय क्षेत्र अहार जी प्र० सेठ हीरालाल, दीपचन्द, अनंदीलाल जैन हटा (टीकमगढ़), १९६२ । ३९. रमेशचन्द्र गुणार्थी, राजस्थानी जातियोंकी खोज, प्र. आर्यब्रदर्स बुकसेलर, अजमेर, १९६५ । १९. श्री वि० जै० गोलापूर्व समाज, दमोह, प्र० पं० रविचन्द्र जैन, दमोह, १९८५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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