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________________ ११० : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ गया है। खटौरा ग्राम उस क्षेत्रमें स्थित है जहाँ गोलापूर्व प्राचीनकालसे रहते आ रहे है । कविने १३४ वर्ष पूर्व बुन्देले जुझार सिंह (१६२७-१६३५) के राज्यकालमें (ई० १६३४) में अपने पूर्वजों द्वारा गजरथ चलाये जानेका उल्लेख किया है, और तबसे अपनी वंशावली दी है। कविने इनके भी बहुत पहले (चतुर्थ काल चंदेरीमें अपने पूर्वज गोल्हन शाहका उल्लेख किया है । यह सही मालम होता है क्योंकि चंदेरिया नाम चंदेरीमे रहने के कारण ही पड़ा होगा, और बारहवीं शताब्दीके शिलालेखोंमें गल्हण, रल्हण, खेल्हण, कल्हण आदि नाम पाये गये हैं। कविने बुन्देलखण्ड की गहोई जातिको गृहपति कहा है और उनमें 'जैन लगार' का उल्लेख किया है। प्राचीन शिलालेखोंसे यह बात प्रमाणित होती है। बीसवीं शताब्दीके आरम्भमें गहोई जातिमें कोई भी जैन नहीं थे, वह अपने प्राचीन नामकी जानकारी संभवतः गहोई जातिमें भी नहीं थी ।२.१६ __ स्पष्टतः गोलापूर्व जातिकी स्थापना भगवान् आदिनाथके समयमें असंभव है। पर किसी गोयलगढ़से उत्पत्ति संभव है। यति श्रीपालचन्द्रने चौरासी जैन जातियोंकी उत्पत्तिके स्थान दिये है। इसमें कई सही है, पर कुछ कल्पित मालूम होते हैं। इनमें गौलवाल जातिके लिये गौलागढ़ स्थान दिया है परन्तु गोयलगढ़की पहिचान नहीं हो सकी है। किसी-किसीने ग्वालियर माना है। परन्तु ग्वालियरके आसपास न तो गोलापूर्वोके कोई शिलालेख पाये गये हैं, न वहाँ गोलापूर्वोकी आबादी रहने का प्रमाण मिलता है । परमानन्द शास्त्रीने इसे चंदेरी के पास गोलाकोट (जिला गुना) माना है। पर इस स्थानके आसपास भी न तो गोलापूर्वोके शिलालेख मिलते हैं, और न ही गोलापूर्वोकी विशेष जनसंख्या रही है। नाथूराम प्रेमी" का अनुमान था कि इस जातिका उद्धव सूरतके आसपास कहींसे हुआ है, पर यह निश्चित ही गलत है। गोलापूर्व शब्दकी कुछ अन्य उत्पत्तियां बतायी जाती हैं, पर वे स्पष्टतः कल्पनायें हैं । गोला (या गोल्ला) शब्द किसी स्थानका सूचक है, इस स्थानकी पहिचान एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न रहा है । यहाँपर ये बातें विचारणीय हैं। (१) जैनोंमें ही एक गोलालारे जाति है, इसे शिलालेखोंमें गोलाराडे कहा गया है । जिस प्रकार महाराष्ट्र के निवासी मराठे, सौराष्ट्रके निवासी सोरठे (सोरठिया) काराष्ट्रके निवासी कर्हाडे, उसी तरह गोलाराष्ट्र (अर्थात् गोला देश) के निवासी गोलाराडे कहलाये । इसी प्रकारके अहारके लेखोंमें गर्गराट जातिका उल्लेख है ।२७ ये ही गंगराड होंगे जिनकी उत्पत्ति गंगराड स्थानसे बताई गई है। वर्तमानमें गंगेरवाल कहलाते है, इन्हें ही नवलसाहने गागड़ कहा है। गंगराड स्थान संभवतः वर्तमान गंगाधर (जिला झालवाड़) है।८।। (२) गोलसिंघारे (गोल शृंगार) भी गोला स्थानसे निकले होंगे । (३) आगरा जिलेके आसपास एक गोलापूर्व ब्राह्मण जाति निवास करती है।५,२२ इसके अलावा दजियों व कलारों में भी गोलापूर्व नामके विभाग है ।१६ एक ही स्थानसे निकली अनेक जातियाँ अक्सर एक ही नामसे कहलाती हैं । ये उदाहरण दृष्टव्य हैं ।१६,२५ (क) कनौजिया (कान्यकुब्ज, कन्नौजके) : ब्राह्मण, अहीर, बहना, भड़भूजा, भाट, दहायत, दर्जी, धोबी, हलवाई, लुहार, माली, नाई, पटवा, सुनार व तेली। (ख) जैसवाल [जैस (जिला रायबरेली) के] : बनिया, बरई, (पनवाड़ी) कुरमी, कलार, चमार व खटीक । (ग) श्रीवास्तव (श्रावस्तीके) : कायस्थ, भडभूजा, दर्जी, तेली । (घ) खंडेलवाल (खंडेलाके) : ब्राह्मण, बनिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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