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________________ ४८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ उनके आसपासके क्षेत्रोंमें जा बसे । जबलपुरके पास बहोरीबन्द भी इनकी आवासभूमि रही । इन्द्राना, मझगवां, सिहोरा. बाकल. रीठी और पनागर इस अन्वय के केन्द्र स्थल रहे हैं। यहांसे ये श्रावक पाटनकी ओर बढे हैं। दमोहसे जबलपुरकी ओर अभाना, तेंदुखेड़ा, कटंगो नगरोंमें जाकर ये रहने लगे। ___ जो श्रावक अहार, पपौराकी ओर आये थे वे जतारा होते हुए आगे बढ़े और हीरापुर, बक्स्वाहा, बम्हौरी, सुनवाहा, रुरावन, शाहगढ़, बरायठा, पिढ़रुआ, जुझार, बैरी, भेलसी, तिगोडा, धिनीची, पथारी, गूडर, गूगरा, पचरई, सोरई, करैया, पड़वार, दरगुवां, पाटन, विजावर, भरतपुरा, सेंधपा, लखारी, निबौदा आदि बुन्देलखण्डके अनेक ग्रामोंमें जाकर बस गये । जो श्रावक सागरकी ओर आये वे रहली, पटना, बरखेरा, बलेह, गढ़ाकाकेटा, सरखड़ी और बांसातारखेड़ा, रजपुरा ग्रामोंमें जाकर आजीधिका करने लगे। इस प्रकार टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, सागर, जबलपुर, शिवपुरी, ग्वालियर, इन्दौर आदि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेशके झांसी, ललितपुर जिले आरम्भमें इस अन्वयके निवास स्थान बने। कालान्तरमें आजीविकाको दृष्टिसे बुन्देलभूमिको छोड़कर इस अन्वयके श्रावक शहडोल, कोतमा, चिरमिरी, मनेन्द्रगढ़, जैतहरी, बालाघाट, गोंदिया, नागपुर, बम्बई, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, राजिम, डोंगरगांव, जयपुर, वाराणसो कुरुक्षेत्र, उदयपुर, जबलपुर आदि भारतके विभिन्न नगरोंमें रहने लगे। विदेशोंमें भी इस अन्वयका आवास हो गया है। सन्दर्भ सूची १. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, माणिकचन्द्र जैनग्रन्थमाला, हीराबाग-बम्बई-४, सितम्बर १९५२ प्रकाशन, अभिलेख संख्या २०९, पृ० २६९ । २. इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द ११, पृ. ३१० । ३. लेखकको स्व०५० परमानन्दजीसे प्राप्त ऊन (पावागिरि) का सं० १२५८ का लेख । ४. पितुरन्वयशुद्धिर्या तत्कुलं परिभाष्यते । मातुरन्वयशुद्धिस्तु जातिरित्यभिलप्यते ।। -महापुराण, पर्व ३९, श्लोक ८५ । ५. देसकुलजाइशुद्धा विसुद्धमणवयणकायसंजुत्ता । -आचार्यकुन्दकन्द, आचार्यभक्ति. गाथा प्रथम । ६. णवि देहो वंदिज्जइ णवि य कुलो णवि य जाइसंजुत्तो । को वंदमि गुणहीणो णह सवणो णेय सावओ होई॥ -वही, दर्शनपाहुड : गाथा २७ । ७. ज्ञानं पूजां कुलं जाति वलमृद्धि तपो वपुः । अष्टावाश्रित्यमानित्वं स्मयमाहर्गतस्मयाः ।। -आचार्थ समन्तभद्र, रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक २५ । ८. डॉ० राजेश्वरप्रसाद अर्गल, समाजशास्त्र, आगरा, ई० १९५३ प्रकाशन, पृ० २०१ । ९. मनुष्जातिरेकैव जातिनामोदयोद्भवा । वृत्तिभेदाहिताभेदाच्चातुर्विध्यमिहाश्नुते ।। -महापुराण, पर्व ३८, श्लोक ४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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