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________________ कर दिया। तब मैंने पं० फूलचन्द्रजीको एक स्थानपर बैठकर तत्त्वचर्चाकी योजना बनानेके लिये बीनामें बुलाया और वे आ भी गये। हम दोनोंने मिलकर तत्त्वचर्चाको योजना बनाई, जिसे अखबारों में प्रकाशन के लिये भेज दिया गया । २ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व १९ ૨૪ प्रश्न-तत्वचर्चा के लिये आपने जयपुर ही क्यों चुना ? उत्तर - पहले तो मैंने पं० फूलचन्द्रजीसे कहा कि तस्वचर्चा आप जहाँ अपना गढ़ समझे वहीं चर्चा को जा सकती है। लेकिन जब देखा कि जयपुर (खानियां) में आचार्य शिवसागरजी महाराजका चातुर्मास हो रहा है तो वही स्थान उपयुक्त समझा गया । सेठ हीरालालजी पाटनी निवाईवाले तत्त्वचर्चा-आयोजनका पूरा व्यय उठाने को तैयार हो गये तथा ब० लाडमलजीने सभी विद्वानोंको हमसे बिना पूछे ही निमंत्रण भेज दिये। इसके पश्चात् पहले तो तस्वचर्चा में पं० फूलचन्द्रजीने आनेसे मना कर दिया। इसलिये विद्वानोंको भी आनेसे मना कर दिया गया। लेकिन जब वे अक्टूबर में जयपुर पहुँच गये तो विद्वानोंको पुनः तार देकर बुलाया गया। हम भी वहाँ पहुँच गये। हम लोगकि पहुँचनेके पूर्व ही तत्वचचक नियम भी तय कर लिये गये थे । प्रश्न-तत्वचर्चाका प्रमुख मुद्दा क्या था ? उत्तर -- सोनगढ़ विचारधारासे हम लोग सहमत नहीं थे, इसलिये उनकी विचारधारा ही तत्त्वचर्चा का मुख्य मुद्दा बन गया । यह चर्चा कई दिन तक चली । प्रश्न- जरा, इसपर विस्तारसे प्रकाश डालिये ? उत्तर--तस्वचचके तीन दौर चले। हमने शंका रखी, जिसका दूसरे पक्षने जवाब दिया। उस उत्तर पर फिर हमने शंका प्रस्तुत की, उसका भी उत्तरपक्षने तत्काल उत्तर दे दिया । फिर चर्चाका तीसरा दौर चला और उसकी वही स्थिति रही। लेकिन किसी विद्वानको संतुष्टि नहीं हुई, क्योंकि चर्चा चलते कोई १० दिन हो गये और इसलिये सभी थक से गये। इसके बाद हम सब विद्वान् दिल्ली चले गये और वहाँ भी सोनगढ़ पक्षके उत्तरको हमने समोक्षा को जिसका उत्तर भी मिला। इसके बाद तो चर्चा ही बन्द हो गई। फिर सोनगढ़की ओरसे वानिया तत्वचर्चाका प्रकाशन किया गया, जिसको दोनों पक्षोंको ओरसे 1 छापना था । प्रश्न- मैंने तो उस समय सुना था कि सानिया तत्त्वचर्चा में आपका पक्ष हार गया ? उत्तर - यह तो सोनगढ़ पक्षकी ओरसे फैलाई गई निराधार एवं भ्रामक अफवाह थी सोनगढ़पक्षने तो कभी कोई प्रश्न नहीं दिया, लेकिन अब प्रश्न व नहीं मानता । Jain Education International रखा। ऐसी कोई सोनगढ़ पक्षकी शंका नहीं थी, जिसका हमने उत्तर नहीं उत्तरसे अथवा तत्त्वचर्चासे क्या फायदा ? चर्चा में कभी कोई पक्ष अपनी हार प्रश्न- इसके पश्चात् आपने सोनगढ़-विचारधाराका प्रभाव कम करनेके लिये और क्या किया ? उत्तर- मैने सोनगढ़को विचारधाराको गलत सिद्ध करनेके लिये बहुत-सी पुस्तकें लिखीं। इनमें (१) खानिया तत्त्वचर्चाको समीक्षा और उसमें सहायक (२) जैन तत्त्वमीमांसाकी मीमांसा, (३) जैनदर्शनमें कार्यकारणभाव और कारक व्यवस्था तथा (४) जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार नय ( ५ ) ' पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी' के नाम उल्लेखनीय हैं। इन पुस्तकोंके अतिरिक्त कितने ही लेख लिखे और वर्तमानमें भी लिखनेके प्रयत्नमें हूँ। समाजसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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