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________________ २ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ११ घोषित किया था। पर जिला कांग्रेस कमेटीके पदाधिकारियोंके कहनेपर एक अन्य व्यक्ति उम्मीदवार बन गया था, जिसके कारण मतदान हुआ और उसमें अनुचित तरीके भी अपनाये गये । हांलाकि मैं सफल हुआ, क्योंकि मेरे पक्षमें श्री नन्दकिशोरजी मेहताने बड़ी मेहनत की थी । आज देशका जो राजनैतिक गंदा वातावरण चल रहा है, उसका कारण यही है कि लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए देशकल्याणकी उपेक्षा कर रहे हैं । जो शासन पार्टी है वह अपनी स्वार्थसिद्धिके लिए गलत तरीके अपना रही है और दूसरी राजनैतिक पार्टियाँ भी सत्ता पानेके लिए गलत तरीके अपनाने से नहीं चूक रही हैं। इसे देशका दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। आज जो समूचा देश भ्रष्टाचारमें डूबा हुआ है वह इसीका परिणाम है । को० : आपको दृष्टिमें उसे दूर करनेका क्या कोई उपाय है ? व्या० : स्वतन्त्रता प्राप्त होनेपर महात्मा गाँधोने कांग्रेसी नेताओंको यह सुझाव दिया था कि कांग्रेसका राजनीतिक स्वरूप समाप्त कर दिया जाये । उसे केवल लोक-संस्था ही बनी रहने दिया जाये । परन्तु कांग्रेसी नेताओंने महात्माजीके उस सुझावको अस्वीकृत कर दिया था । यदि महात्माजी के सुझावको तत्कालीन कांग्रेसी नेता स्वीकार कर लेते, तो मुझे विश्वास है कि राजनीतिक पार्टियाँ और देश पतनकी ओर नहीं जाते। आज एक उपाय सम्भव है कि शासक पार्टी अपनेको सुधारे तो दूसरी राजनैतिक पार्टियाँ और देश सुधर सकता है । सुधार ऊपरसे ही हो सकता है, नीचेसे नहीं । को० : क्या आपने सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियोंमें भी भाग लिया है और वे कौन कौनसी हैं ? व्या० : हाँ, लिया है। प्रथमतः दस्सा पूजाघिकारको ले लें। समाज में यह प्रथा चालू रही है कि कोई व्यक्ति विधवा-विवाह कर ले, तो उसे जातिसे बहिष्कृत कर दिया जाता था और उसे धर्मसाधनके स्थान मन्दिरोंमें प्रवेश नहीं करने दिया जाता था । ऐसे व्यक्तियोंको दस्सा कहा जाता था और उनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी सन्तान भी दस्सा कही जाती थी । धीरे-धीरे इस प्रक्रियामें सुधार हुआ । पर ऐसे व्यक्तियोंको मन्दिरमें पूजा करनेका अधिकार फिर भी नहीं था । गुरु गोपालदास वरैयाने इस विषय में चल रहे एक अदालती केसमें बहुत पहले दस्साओं के मन्दिर प्रवेश और पूजाधिकारका दृढ़ता से अपनी गवाही में समर्थन किया था । वर्तमानमें करीब सन् १९३८ में, ग्राम बामौरा, जिला सागरमें एक व्यक्ति के विधवा-विवाह करनेपर मन्दिरके सब अधिकार वहाँकी समाज ने उससे छीन लिए । लेकिन वह इसके विरुद्ध आवाज उठाता ही रहा । इसी सिलसिले में वह बीना आया और पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री और मुझसे सम्पर्क स्थापित किया । उस समय पं० फूलचन्द्रजी और मैं समानरूपसे सुधारवादी दृष्टिकोणके थे । इसलिए हम लोगोंने एक "सन्मार्ग प्रचारिणी समिति” की स्थापना की। हांलाकि दिगम्बर जैन परिषद् पहलेसे ही इसका आन्दोलन चला रही थी । पर हमलोगोंने उसे गति देनेके लिए इस समिति - की स्थापना की थी । समितिके द्वारा हमलोगोंने बामौराकी समाजको समझानेका प्रयत्न किया । परन्तु जब वहाँकी समाज उस व्यक्तिको पूजाधिकार देनेके लिए तैयार नहीं हुई, तो बाकायदा अदालत में केस ले जानेका निर्णय किया। केस चला। परन्तु इस क्षेत्रकी जैन समाजका बल बामोराकी समाजको मिला और उस केसमें हमें सफलता नहीं मिली । को० : क्या दस्सापूजाधिकारका मामला फिर आगे नहीं बढ़ा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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