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________________ २/व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ५ करके पूरा किया। इतना ही नहीं, कोठियाजीने शास्त्राचार्य (जैनदर्शन), एम० ए० (संस्कृत) और पी-एच० डी० (जैन तर्कशास्त्र) की परीक्षायें देकर उनमें प्रथम एवं उच्च द्वितीय श्रेणीमें उर्तीणता भी प्राप्त की। कहना होगा कि उच्च शिक्षा स्वयं ग्रहण करने और दूसरोंको उसके लिए प्रेरित करने में पंडितजीकी रुचि और दूरदृष्टि कितनी सार्थक रही है। गृहस्थाश्रममें प्रवेश : जब पंडितजी वाराणसी में व्याकरणाचार्यके चार खण्ड उत्तीर्ण कर चके थे और पंचम खण्डकी तैयारीमें संलग्न थे। तब संयोगसे शाह मौजीलालजी, बीना अपने बहनोई सिंघई नन्हेंलालजी टोपीवाले सागरके साथ व्यापारिक कार्यसे वाराणसी गये । वाराणसी सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ और तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथकी जन्मभूमि है तथा समाजका प्रसिद्ध स्याद्वाद महाविद्यालय भी यहीं है, जहाँ पंडितजी उच्च अध्ययन कर रहे थे। दोनों महानुभाव दोनों स्थानों के दर्शन करते हुए स्थाद्वाद महाविद्यालय पहुंचे। शाहजी अपनी लड़कीके लिए योग्य लड़केकी खोजमें थे। यहाँ पंडितजीसे सम्पर्क हुआ। दोनों महानुभावोंको पंडितजी सुयोग्य जचे। घर आकर और अपने दोनों भाईयों (शाह अर्जुनलालजी, व शाह दयाचन्द्रजी, परिवार जनों । तथा रिश्तेदारोंसे परामर्श करके शाहजीने निर्णय लिया कि अपनी लड़कीके लिए पण्डितजी सबसे उपयुक्त और सुयोग्य लड़के हैं। फलतः पंडितजीका सम्बन्ध सन् १९२८ में शाह मौजीलालजीकी सुपत्री लक्ष्मीबाईके साथ सम्पन्न हो गया। पण्डितजीके अनुरूप धर्मपत्नी : यों तो प्रत्येक पुरुषकी धर्मपत्नी उसके अनुरूप होती या बन जाती है। किन्तु पण्डितजीकी धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीबाई स्वभावतः उनकी समान-गुणधर्मा थीं। उनमें गाम्भीर्य, सहज स्नेह, वात्सल्य, उदारता, दयालुता, सहनशीलता, अक्रोध, अमान, अमाया, अलोभ जैसे गुण विद्यमान थे। अस्वस्थ होने पर भी वे पण्डितजीकी दिनचर्या और आतिथ्यमें कभी शैथिल्य नहीं करती थीं। कुटुम्बियों और रिश्तेदारोंके प्रति उनके हृदयमें अगाध स्नेह एवं आदर रहा। पण्डितजीको यह भी पता नहीं रहता था कि घरमें क्या चीज है और क्या नहीं है । पैरोंमें कभी चप्पलें नहीं पहनी। लोग कहते थे कि--'देखो, लछोबाईको इतनी सम्पन्न होनेपर भी उसकी कितनी सादी वेश-भूषा है। पैरों में चप्पलें भी नहीं पहनती हैं।" वास्तवमें लक्ष्मीबाई सतयुगी गृहणी थीं और स्वयं लक्ष्मी। सहनशीलता एवं कुटुम्बप्रेम तो इतना था कि पं० बालचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री (भतीजे), डॉ० पं० दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य (भतीजे), पं० बालचन्दके दो बच्चों और एक बच्ची तथा हमारी (पं० दुलीचन्द्र, भतीजेकी) दो बच्चियोंकी शादियाँ उन्होंने अपने घरसे ही की। पर कभी अन्यथाभाव प्रदर्शित नहीं किया। यह स्त्रीस्वभावकी दृष्टिसे कम महत्त्वकी बात नहीं है। यह दैवकी विडम्बना है कि वे ५८ वर्षकी आयुमें ही कालकवलित हो गयीं। अपने पीछे वे तीन सुयोग्य पुत्रों तथा तीन सुयोग्या पुत्रियोंके भरे-पूरे परिवारको छोड़ गई। ऐसी सतयुगी देवी श्रद्धेया श्रीमती लक्ष्मीबाईको हमारे शतशत नमन हैं। परिवार पण्डितजीके तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। यह संयोग ही है कि पुत्र-पुत्रियोंकी संख्या समान है। पुत्र हैं १. विभव कुमार (४२), २. विवेक कुमार (४०), ३. विनोतकुमार (३२) । विभवकुमार अपने पैत्रिक वस्त्रव्यवसायमें संलग्न है। दूसरा पुत्र विवेक कुमार इन्जीनियर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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