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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएँ : ६७ ललाम कृतित्वके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु उनका अखिल भारतीय अभिनन्दन और एतदर्थ अभिनन्दन ग्रन्थका प्रकाशन-समर्पण एक चिर अपेक्षित महनीय कार्य है। मैं, इस अवसर पर, पूज्य पं० जीके महनीय योगदानको गौरवपूर्वक नमन कर उनके चिरायुष्ककी कामना करता हूँ--'जीवेत् शरदः शतं, भूयश्च शरदः शतात्' इति । जैनतत्त्वोंके समीचीन विश्लेषक •श्री विजयकुमार मलया, अध्यक्ष-जैन पंचायत, दमोह श्रद्धेय पं० बंशीधरजीकी पर्यायवाची बन गयी है उनकी उपाधि--'व्याकरणाचार्य' । वे सर्वत्र इसी सम्बोधनसे पहचाने जाते हैं । उनके व्यक्तित्व और वैदुष्यके सृजनमें पूज्य वर्णीजीका महत्त्वपूर्ण अवदान है । 'समयसार' प्रभृति आर्ष ग्रन्थोंके हार्दको वर्णीजीने जिस रूपमें व्याख्यात किया, वही पद्धति पं० व्याकरणाचार्यजीने जैन तत्त्वोंके समीचीन प्रस्तुतिकरणमें अपनायी है। पं० जीका यह प्रयत्न जैन संस्कृति संरक्षणको दिशामें नितरां अभिनन्दनीय है। उनके प्रति हमारी कोटिशः मंगल कामनाएँ। क्रान्तिकारी व्यक्तित्व .श्री जयकुमार इटोरया, अध्यक्ष-दमोह किराना व्यापारी संघ अध्यक्ष-इटोरया सार्वजनिक न्यास एवं उपाध्यक्ष-दमोह जैन पंचायत देशके अन्य भागोंकी अपेक्षा बुन्देलखण्ड आज भी पिछड़ा हुआ है। अबसे पचास वर्ष पूर्वके इसके पिछड़ेपनकी तो केवल कल्पना की जा सकती है। किन्तु आज जिन बातोंको कल्पनाके बल पर साक्षात् करनेका प्रयास करते हैं सौभाग्यसे 'खद्योतवत् सुदेष्टारो, हा द्योतन्ते क्वचित् क्वचित्'-की भाँति उन परिस्थितियोंके प्रत्यक्ष-दृष्टा कहीं-कहीं अब भी विराजमान हैं। ऐसी ही विभूतियोंमेसे एक हैं-सिद्धान्ताचार्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य ।। राष्ट्रमें महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस और सामाजिक धरातल पर क्षु० गणेशप्रसादजी जैसे महापुरुष एक निजी विशिष्ट शैलीमें राष्ट्र और समाजके उत्थानमें जुटे थे । बुन्देलखण्डका जैन समाज भी साधनहीन था। शिक्षाके एक तो यहाँ साधन ही नहीं थे और फिर समाजका भी ध्यान इस ओर नहीं था। हाँ, बाह शौकत दिखावेवाले झूठी मान प्रतिष्ठा वाले कामोंमें जरूर ही समाज दत्तचित्त था। अतः ५० वर्णीजीके कार्योको सामने रखकर पूज्य व्याकरणाचार्यजीने समाजमें अलख जगाया । यहाँकी समाज गजरथ-आयोजनमें बहत धन व्यय करती थी, बच्चोंकी शिक्षा आदि पर उसका ध्यान प्रायः नहीं था। फलतः इस बहु व्ययसाध्य अनावश्यक आयोजनको समाप्त करने | स्थगित कराने / निश्चित अन्तरालके बाद आयोजित करानेके लिए व्याकरणाचार्यजीने सुव्यवस्थित ढंगसे आन्दोलन चलाया । केवलारीके रथोंके समय उन्होंने जो आन्दोलन चलाये थे और उनमें जो सफलता मिली थी, उसकी अच्छी यादें मुझे आज भी तरोताजा हैं। क्योंकि मेरे बड़े भैया (स्व०) भागचन्द्रजी इटोरया, दमोह ऐसे सभी कार्यों में श्रद्धेय पंजीके सक्रिय समर्थक और अनुयायी थे। मैं भी एक नन्हें सिपाहीकी भूमिकामें उनके साथ रहता था। पं० जीके इन आन्दोलनोंका प्रभाव इतना अवश्य परिलक्षित हुआ कि उन दिनों रथ चलाने की गतिमें अन्तराल आ गया था। समाजका आचार-विचार कैसा हो रहा है और हमारी प्राथमिक आवश्यकताएँ क्या है ? इस ओर ध्यान देनेके लिए अब पुनः जोरदार आन्दोलनकी जरूरत है। मैं पूज्य पं० जीकी संस्कृति-सेवाको अत्यन्त गौरवके साथ प्रणाम करके भगवान जिनेन्द्र देवके शासनसे प्रार्थना करता हूँ कि पूज्य पं० जी चिरायु हों तथा उनका सन्देश घर-घर पहुँचे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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