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________________ जैन भक्ति साहित्य है। जैन भक्त कवियों ने दाम्पत्य रति का सम्बन्ध भौतिक क्षेत्र से न जोड़कर आध्यात्मिकता से जोड़ा है । साथ ही वीतरागी भक्ति से सम्पूर्ण जैन भक्ति साहित्य परिपूर्ण है। ६३१ I स्वयंभू का 'पउमचरिउ वि० सं० नवमी शती में रचा गया अपभ्रंश भाषा का ग्रन्थ है । इसी प्रकार कवि पुष्पदन्त का 'णायकुमारचरिउ' वि० सं० १०२६ में रची गयी अपभ्रंश भाषा की कृति है, जिसे पुष्पदन्त ने देशभाषा की संज्ञा दी है । श्रीचन्द ने जैन भक्ति सम्बन्धी कथाओं को लेकर देशभाषा में 'कथाकोष' नामक ग्रन्थ की रचना की । तेरहवीं शती में विनयचन्द सूरि ने 'नेमिनाथ चंउपई' ग्रन्थ का प्रणयन किया जातिभ्रसूरि का बाहुबलिस' (सन् ११०४) एक उच्च कोटि का ग्रन्थ है महेन्द्रसूरि के शिष्य धर्मसूरि ने वि० सं० १२६६ में 'जम्बूस्वामीचरित', स्थूलचन्द्ररास' तथा 'सुभद्रासती चतुष्पदिका' ग्रन्थों की रचना की । इनके अतिरिक्त ईश्वर सूरि, (सं० १५६१), गुणसागर (सं० १६२६), त्रिभुवनचन्द्र (सं० १६५२), सुन्दरदास (सं० १६७५), कनक कीर्ति, जिनहर्ष (सं० १७१३), बिहारीदास ( ० १७५८) तथा पं० दौलतराम (सं० १७७७) आदि जैन भक्त साहित्यकारों के नाम भी उल्लेखनीय हैं । Jain Education International जैन भक्ति साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जो कि अनेक जैन भक्त कवियों द्वारा समय-समय पर प्राकृत, अपभ्रंश, देशभाषा तथा हिन्दीभाषा में रचा गया है। इस लेख में समूचे जैन भक्ति साहित्य का विस्तृत विवेचन तो सम्भव नहीं था, अतः उसकी मुख्य-मुख्य प्रवृत्तियाँ एवं तत्सम्बन्धी विशेषकर हिन्दी की प्रमुख कृतियों तथा कृतिकारों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। For Private & Personal Use Only O www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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