SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 997
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड .मोह पिशाच छल्यो मति मार, निज कर बंध वसूला रे। भज श्री राजमतीवर भूधर, दो दुरमति सिर धूला रे॥ -(भूधर विलास) जैन भक्त कवियों ने भक्ति सम्बन्धी अनेक श्रेष्ठ काव्य ग्रन्थों की रचना की है जो कि शतक, बावनी, बत्तीसी तथा छत्तीसी आदि के रूप में उपलब्ध होते हैं । बारहखड़ी के अक्षरों को लेकर सीमित पद्यों में काव्य-रचना करना जैन भक्त कवियों की अपनी विशेषता है । पं० दौलतराम का "अध्यात्म बारहखड़ी" बृहद् काव्यग्रंथ उल्लेखनीय हैं। बारहखड़ी के अक्षरों पर लिखा गया यह बृहद् मुक्तक काव्य अभूतपूर्व एवं अनन्य है । जैन भक्त कवियों द्वारा लिखी गई अनेक बावनियाँ उपलब्ध होती हैं, जिनमें भक्तिपरक अनुपम भाव सामग्री भरी पड़ी है । पाण्डे हेमराज की "हितोपदेश-बावनी", उदामराजजती की 'गुणबावनी', पं० मनमोहनदास की 'चिन्तामणि-बावनी', जिनरंभसूरि की 'प्रबोधबावनी' आदि जैन-भक्ति-साहित्य की उल्लेखनीय कृतियाँ हैं । शतक ग्रन्थों में पाण्डे रूपचन्द का परमार्थीदोहाशतक', भवानीदास का 'फुटकरशतक' तथा भैया का ‘परमात्मशतक' आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। जैन भक्त कवियों ने अनेक बत्तीसी, छत्तीसी और पच्चीसियाँ भी रची हैं । बनारसीदास की 'ध्यानबत्तीसी' और 'अध्यात्म बत्तीसी', मनराम की 'अक्षरबत्तीसी', लक्ष्मीवल्लभ की 'चेतनबत्तीसी', और 'उपदेशबत्तीसी' कुशललाभ की स्थूलभक्तछत्तीसी' सहजकीर्ति की 'प्रतिछत्तीसी' और उदयराजजती की 'भजन छत्तीसी', द्यानतराय की 'धर्मपच्चीसी', विनोदीलाल की 'राजुलपच्चीसी' और 'फूलमाल पच्चीसी' तथा बनारसीदास की 'शिवपच्चीसी' आदि उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं। जैन भक्त कवियों ने भगवद्विषयक अनुराग को लेकर अनेक प्रेम रूपकों को भी रचना की है। इन ग्रन्थों में सुमति रूपी पत्नी का चेतन रूपी पति के लिये व्याकुलता का भाव अभिव्यक्त किया गया है। इस प्रकार के ग्रन्थों में पाण्डे जिनदास का 'मालीरासो', उदयराजजती का 'वेदविरहिणीप्रबन्ध', पाण्डे रूपचन्द का 'खटोलनागीत', हर्षकीति का 'कर्महिण्डोलना' और भैया भगवतीदास का 'सुआबत्तीसी' और 'चेतनकर्मचरित' आदि प्रसिद्ध रूपक कृतियाँ हैं । वास्तव में ये सरस काव्य ग्रन्थ हिन्दी साहित्य को जैन भक्त-कवियों की अनूठी देन हैं। जैन भक्त कवियों ने अनेक प्रबन्ध काव्यों (महाकाव्यों) की भी सृष्टि की है। इन ग्रन्थों में जिनेन्द्र अथवा उनके अनन्य भक्तों को प्रमुखता प्रदान की गई है। इन ग्रन्थों की रचना अपभ्रंश के महाकाव्यों की पौराणिक एवं रोमांचक दोनों प्रकार की शैलियों का सम्मिश्रण करके की गई है। सधारू का 'प्रद्युम्नचरित', कवि परिमल्ल का 'श्रीपालचरित्र', माल कवि का 'भोजप्रबन्ध', लालचन्द लब्धोदय का 'पद्मिनीचरित'; रामचन्द्र का 'सीताचरित' तथा भूधरदास का पार्श्वपुराण' आदि महत्त्वपूर्ण महाकाव्य हैं । इन महाकाव्यों में बीच-बीच में मुक्तक स्तुतियों का भी समावेश किया गया है। इन प्रबन्धकाव्यों की एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि ग्रन्थ के अन्तिम अध्याय में नायक की केवलज्ञान प्राप्ति का भी सरस एवं भावपूर्ण वर्णन किया गया है तथा नायक की आत्मा का परमात्मा से तादात्म्य होना भी दरशाया गया है । साथ ही ये महाकाव्य सगुण (सकल) और निर्गुण (निष्कल) की भक्ति का निरूपण करने के लिये रचे गये हैं। जैन भक्त कवियों द्वारा अनेक खण्डकाव्यों की भी रचना की गई है। उनमें से अधिकांश नेमिनाथ और राजीमती की कथा को लेकर गचे गये हैं । नेमिनाथ विवाह-मण्डप से बिना विवाह किये ही वैराग्य लेकर तप करने चले गये थे, किन्तु राजीमती ने उन्हें अपना पति माना और किसी अन्य के साथ विवाह नहीं किया और संयम लेकर आत्मसाधना में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया। नेमिनाथ पर लिखे गये खण्डकाव्यों में राजशेखरसूरि का 'नेमिनाथफागु', सोमनाथसूरि का 'नेमिनाथफागु', कवि ठकुरसी की 'नेमिसूर की वेली' तथा अजयराज पाटणी का 'नेमिनाथचरित' महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं । ___ जैन भक्त कवियों ने अपने लगभग सभी प्रबन्ध काव्यों का प्रारम्भ सरस्वतीवन्दना से किया है । मुक्तककाव्यों में भी सरस्वती की स्तुतियाँ उपलब्ध होती हैं। जैन भक्त कवियों ने विलास का सम्बन्ध भक्ति से नहीं जोड़ा है। 'गीतिगोविन्द' की राधा और 'रट्ठणेमिचरिउ' की राजुल में बहुत अन्तर है । नेमिनाथ और राजुल से सम्बन्धित सभी जैन काव्य विरह-काव्य हैं, किन्तु राजुल के विरह में कहीं भी वासना अथवा विलासिता की गन्ध नहीं आने पाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy