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________________ 666 ६०२ DIGICICI Jain Education International कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड चरित्र, व्याकरण, संस्मरण आदि विविध धाराओं में अदम्य उत्साह के साथ साहित्य लिखते गये। आपने बहुत सारा साहित्य तत्कालीन समृद्ध भाषा मारवाड़ी में विशेष लिखा है क्योंकि जन-भाषा में लिखा हुआ साहित्य ही जनोप योगी हो सकता है । --- आपके साहित्य में सहज सरसता, सुगमता गम्भीरता और धर्म तथा संस्कृति के रहस्य मर्म खोलने का स्वाभाविक चातुर्य छुपा हुआ है। आपका अपना स्वतन्त्र चिन्तन एवं मननपूर्वक लिखा हुआ साहित्य विशेष प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। वस्तुतः कुशल साहित्यकार वही होता है जिसका लिखा हुआ साहित्य सुनने या पढ़ने मात्र से नयी चेतना की स्फुरणाएँ पैदा कर दे। भगवान महावीर ने कहा है- "जे सोच्चा पडिवज्जंति, तवं खंति महिं सयं" - जिस वाणी को सुनकर सोचकर इन्सान तप, संयम और अहिंसा को अंगीकार करें यानी सुपथ पर अग्रसर हों जिससे जीवन की धारा को नया मोड़ मिले। अस्तु आपके साहित्य की झलक इस प्रकार है- आगम साहित्य पद्यानुवाद- १. भगवती री जोड़, २. पन्नवणारी जोड़. ३. निशीथ री जोड़, ४. ज्ञाता री जोड़, ५. उत्तराध्ययन री जोड़, ६. अनुयोग द्वार री जोड, ७. प्रथम आचारांग री जोड, ८. संजया एवं नियंठा से जोड़। भगवती सूत्र ३२ आगमों में सबसे बृहद् ग्रन्थ है जिसको आद्योपान्त पढ़ना कठिन समझा जाता है । वहाँ कवि की लेखनी ने जटिलतम विषयों को पद्यमय बनाकर सचमुच ही एक आश्चर्यकारी कार्य किया है। बिना एकाग्रता इतने बड़े विशालकाय ग्रन्थ का अनुवाद ही नहीं बल्कि जगह-जगह अपनी ओर से विशेष टिप्पणी देने में अनुपम परिश्रम किया है। विविध राग-रागनियों में ५०१ डालें और कुछ अन्तर ढालें लिखी हैं और दोहों के रूप में भी हैं। इसमें कुल ४६६३ दोहे. २२२४५ गाथाएँ, ६५५२ सोरठे, ४३१ विभिन्न छन्द, १८८४ प्राकृत एवं संस्कृत पद्य तथा पर्याय आदि ७४४६ तथा परिमाण ११६० । ६३२६ पद्य परिमाण ४०४ यन्त्रचित्र आदि हैं। इन सबका कुल योग ५२६३२ हैं । इस कृति का अनुष्टुप् पद्य परिमाण ग्रन्थाय ६०९०६ है । इस प्रकार आगमों पर मारवाड़ी में पद्यमय टीका लिखने वाले शायद आप प्रथम आचार्य हुए हैं । इतने बड़े ग्रन्थ की लिपिकर्त्री हमारे धर्मसंघ की प्रमुखा साध्वी श्री गुलाबांजी एवं बड़े कालूजी स्वामी तथा मुनि श्री कुंदनमलजी हुए है जिन्होंने ५१६ पत्रों में प्रतिलिपि की है। इस प्रकार आपने राजस्थानी भाषा में आगमों की जोड़ की । स्तुतिमय काव्य - चौबीस छोटी और बड़ी जिनमें २४ तीर्थंकरों की विशेष स्तुति की है । "सन्त गुणमाला " में श्रीमद् भारमलजी स्वामी के शासन काल में तत्कालीन मुनिवरों का विशेष वर्णन अंकित किया है । "सन्त गुण वर्णन" में तेरापंथ धर्मसंघ के तेजस्वी मुमुक्षुओं की सायना की गई है। "सती गुण वर्णन" में विशिष्ट एवं तपस्विनी साध्वियों का चित्र अंकित किया है। "जिन शासन महिमा" में जैन धर्म की प्रभावना करने वाले विशेष साधु-साध्वियों का पण्डित मरण प्राप्त करने वालों का एवं विघ्नहरण का इतिहास वर्णित है, जो कि बहुत रविकर एवं सरस है । इतिहास - "हेम चोडालियो" इसमें चार डालें है। समग्र गाथा ४६ है । "हेम नवरसो" में दायें हैं। यह अपने शिक्षा एवं विद्यागुरु के विषय पर लिखी गई है। आपने अपने विद्या गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए लिखा है हूँ तो बिंदु समान थो, तुम कियो सिंधु समान । तुम गुण कबहु न बीसरु, निशदिन धरूं तुज ध्यान ॥ ढा० ७, गा० २१ "शासन विलास" यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है | यह तेरापंथ प्रारम्भ दिवस वि० सं० १८१७ से लेकर वि० सं० १८७८ तक तेरापंथ में दीक्षित साधु-साध्वियों का वर्णन प्रस्तुत करता है। इसकी चार ढालें हैं- सम्पूर्ण पद्य ५४७ हैं । “लघुरास” में तत्कालीन प्रमुख ६ टालोकरों, यानी संघ से बहिष्कृत व्यक्तियों के विषय में अनूठा प्रकाश डाला गया है। वही वर्णन आज के युद्ध में भी बहित टालोकरों में पाया जाता है। इसमें १ दोहा, बाकी की ढाले समग्र ग्रन्थ १३३९ गाथाएँ हैं। इस प्रकार इतिहास लिखने में आपकी लेखनी ने अद्भुत कौशल दिखलाया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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