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________________ राजस्थानी काव्य परम्परा में सुदर्शन चरित ५६३ .....................................................0.00000000000000000 आशा अलूधी हूं रहूं, जो हूँ बस न करूंसेठ। ' तो कपिला वचन ऊंचो रहे, म्हारो वचन रहे हेठ ।। x सेठ सुदर्शन सू सुख भोगवी, म्हारो ऊपर आणू बोल । ज्यू कपिला ब्राह्मणी तिणकनें, रहे हमारो तोल ।। वचन काजे बड़ा-बड़ा राजवी करे अनेक अकाज । तो एक अकारज करतां थका, मोने किसी छ लाज ।। वचन काजे हो धायजी, हरिश्चन्द्र बड़ा वीर। भरियो डमघर नीर, नीचतणी सेवा करी ॥ वचन काजे हो श्री लछमन ने राम, ज्यां को प्रसिद्ध नाम । बारे वर्ष वन में रह्या ॥ वचन काजे हो धायजी हनुमंत बड़वीर, गयो लंका नी तीर । सीताजी रे संदेशड़े ।। राम दियो हो वभीषण ने लंका नो राज, करी रावण को अकाज । लंकपति वभीखण ने थापियो । पांच पांडू हो धायजी बचनां के काज, गया जब हारी ने राज । नगर वेराट सेवा करी॥ वचन चुको हो त्यारी न रहीजी शर्म, इणरो तो ओहिज मर्म । ज्यू हूं पिण खपू म्हारा वचन ने ॥ रानी की बात सुनकर पंडिता धाय उसे मृत्यु-दण्ड का भय दिखलाती है कि यदि राजा को इस बात का पता चल जायेगा तो वह तुम्हें बिना मौत मरवा देगाएहवा वचन हो बाई सुणसी श्रीमहाराज, तो थासी बड़ो अकाज । मौत कुमौत कर मारसी जी ॥ ओर सगला हो बाई लागा थारे प्रसंग, त्यांरो पिण होसी भंग। - इण बातां में सांसों को नहीं। तिण कारण हो बाई कहूं छू ताय, निज मन ल्यो समझाय । ___ ग्रही टेक पाछी परहरो॥ धाय की दण्ड नीति का प्रत्युत्तर देती हुई रानी भेद-नीति का आश्रय लेने को कहती है। सच है भोगासक्त मनुष्य क्या नहीं करता? क्योंकि "कामातुराणा न भयं न लज्जा"। वह विविध उपक्रमों का सहारा लेता है। रानी मृत्यु-भय का प्रतिकार एवं कार्य-पूर्ति का उपाय बताती हैसेठ ने हो धाय तुम ल्यावो छिपाय, ज्यू नहीं जाणे राय । पाछो पिण छाने पोहचावज्यो॥ छाने आण हो छाने दीज्यो पोहचाय, तो किम जाणसी राय । थे चिन्ता करो किण कारणे ॥ पण्डिता धाय, रानी की इस छलपूर्ण नीति की सफलता में सन्देह प्रकट करती हैधाय भाखे हो छानी किम रहसी बात, राय करसी तुम घात । ए बात छिपाई ना छिपे ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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