SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्मरण २६ के सम्पर्क में आये, वे आपके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए रोम में बसे हुए हैं। घटना कुछ इस प्रकार की है कि श्री बिना नहीं रहे । यह आपके व्यक्तित्व की एक विशिष्ट सुराणाजी को कालेज हेतु अर्थ-संग्रह यात्रा के लिए विशेषता है। इतना ही नहीं, आपके जीवन को देखकर प्रस्थान करना था। आपने राणावास से श्री पुखराजजी व्यक्ति सहज ही में आपके प्रति श्रद्धालु बन जाता है तथा कटारिया को बुलवाया और कहा कि उन्हें चन्दे की आपके कार्य में तन, मन, धन से हाथ बंटाने के लिए यात्रा में साथ चलना है । इस पर श्री कटारियाजी ने अपनी तत्पर हो जाता है। एक बार की बात है कोपलनिवासी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे दुकानदारी का श्रीमान राणमलजी जीरावला की पत्नी श्रीमती संतोष- काम है। अभी कमाई का सीजन है । अतः आपका साथ देवी राणावास आयी हई थी। श्री सुराणाजी ने उन्हें नहीं दे पाऊँगा। श्री सुराणाजी में व्यक्ति को समझाने व कन्या विद्यालय के काम की रोज देख-रेख के लिए प्रेरित मनाने की कला बेजोड़ है। आपने श्री कटारियाजी से किया तथा उनसे आग्रह किया कि शाला के लिए वे कुछ कहा कि अब की यात्रा उड़ीसा तक की है तथा काफी आर्थिक सहयोग प्रदान करें। श्रीमती संतोषदेवी ने सहर्ष दूर-दूर तक जायेंगे। आते समय अपनी दुकान के लिए श्री सुराणाजी के इशारे पर इच्छित राशि प्रदान कर दी। कुछ सामान ले आना। सीजन की सारी कसर निकल कुछ दिनों बाद श्री राणमलजी का राणावास आगमन जायेगी। इस पर श्री कटारियाजी ने यात्रा में साथ चलने हुआ। उन्हें जब यह मालूम हुआ तो इस पर उन्होंने श्री के लिए अपनी सहमति दे दी। मुहूर्त के अनुसार श्री सुराणाजी को उपालम्भ दिया कि उन्हें इस प्रकार चन्दा सुराणाजी ने उन्हें बताया कि फाल्गुन शुक्ला तृतीया को नहीं लेना चाहिए था। श्री राणमलजी की बातों को सुन- प्रस्थान करना है। श्री कटारियाजी को फाल्गुन शुक्ला कर श्री सुराणाजी मौन रहे और हँभकर बात टाल दी। नवमी की एक शादी में अनिवार्यतः रहना था । धुन के धनी धीरे-धीरे कुछ ही दिनों में श्री राणमल जीरावला भी। श्री सुराणाजी कहाँ रुकने वाले थे ? उन्होंने श्री कटारियाजी श्री सुराणाजी से अत्यन्त प्रभावित हो गये और जिस चन्दे से कहा कि आप शादी से निवृत होकर आ जाना और लापरलेले नाराज थे उसी खला में स्वयं श्री सुराणाजी ने निश्चित तिथि के दिन ही प्रस्थान कदम और आगे जाकर स्वयं ने उन्हें बड़ी मात्रा में चन्दा किया । फाल्गुन शुक्ला १२ को नागपुर से श्री पुखराजजी प्रदान किया। श्री राणमलजी जीरावला से ही उस भवन कटारिया को तार द्वारा सूचित किया कि वे अब शीघ्र का उद्घाटन करवाया। यह है श्री सुराणाजी के व्यक्तित्व रवाना होकर आ जायँ । श्री कटारियाजी तार प्राप्त होते का जादू । लोग नहीं चाहकर भी चाहने लग जाते हैं। ही फाल्गुन शुक्ला १३ को रवाना होकर पूर्णिमा के रोज आखिर औरों के लिये निष्काम बनकर अनासक्त भाव सायं आठ बजे नागपुर पहुंचे। नागपुर शहर में काफी से जो अपना जीवन जी रहे हैं, उनकी त्याग, तपस्या, घूम-घूमकर पूछताछ की और पता चला कि श्री सुराणाजी साधना और लोक-कल्याण की भावना हर किसी को आज ही वहाँ से रायपुर पधारे हैं। श्री कटारियाजी आकर्षित किये बिना नहीं रहती। नागपुर से रायपुर गये । वहाँ पहुंचने पर पता चला कि वे वहाँ से प्रस्थान कर हैदराबाद पहुँच ११. भवितव्य का पूर्वाभास गये हैं। श्री कटारियाजी हिम्मत करके हैदराबाद पहुँचे । जब भी श्री सुराणाजी अर्थ-संग्रह की यात्रा पर जाते हैदराबाद में पता किया। आखिर बुलारम में आपसे हैं, यह देखने में आया है कि श्री पुखराजजी कटारिया व मिलना हुआ । तीन दिन तक हैदराबाद में कार्य किया। श्रीमती सुन्दरबाई सुराणा सदैव यात्रा में साथ रहते हैं। तीन दिन के पश्चात श्री सुराणाजी ने कहा कि अब राम व सीता की यह जोड़ी तो जन्म-जन्मान्तर के सम्बन्धों वापस राणावास चलना है। श्री कटारियाजी को बड़ा से है पर साथ में श्री कटारियाजी के रूप में यह लक्ष्मण अटपटा लगा और कहा कि यदि तीन बाद ही वापस नया ही है । श्री कटारियाजी व श्री सुराणाजी का सम्पर्क चलना था तो फिर मुझे बुलाने का क्या प्रयोजन था? बहुत पुराना नहीं है। वैसे श्री कटारियाजी काका साहब मैं आठ दिन रेल यात्रा करके आपके पास पहुंचा हूँ और से परिचित तो थे पर मामूली रूप में। केवल एक प्रसंग तीन दिन में ही वापस चलने का क्या औचित्य है ? श्री ने ही श्री कटारियाजी को श्री सुराणाजी के इतना नज- सुराणाजी ने कहा कि बस अब ज्यादा यहाँ ठहरना ठीक दीक ला दिया कि अब श्री सुराणाजी कटारियाजी के रोम- नहीं है तथा न ही आगे और कहीं जाना ठीक है। अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy