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________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड - - - - - - - - - - - - - - -- - -. .. - --.-.-.. - - -- - - - - - - - - - - कहा--आप क्या कह रहे हैं ? इस दुविधा की घड़ी में लगती। सोने के गहने उन्हें पीतल के लगते । चाँदी की आपको सामायिक लेना सूझा है। मेरी तो जान पर आ वस्तु उन्हें कतीर की नजर आती । डाकुओं ने प्रत्येक पड़ी है । आप सामायिक छोड़कर मेरे साथ स्कूल पधारो। आभूषण को हाथ में लेकर देख-देखकर इधर-उधर फेंक पत्नी की मनोदशा देखकर काका साहब स्कूल पधार गये। दिया । यदि वे सारी सामग्री ले जाते तो सारा घर खाली स्कूल जाकर पहले सभी बच्चों को इकट्ठा किया। सारी हो जाता। पर पूज्य गुरुदेव भिक्षु स्वामी के प्रताप से बात उनको बताई और आदेश दिया कि सभी बच्चे तीसरी डाकू भी परास्त हो गये। वे अपनी बुद्धि खो चुके थे । मंजिल की छत पर पहुंचे। बच्चों ने वैसा ही किया । काका आँखें होते हुए भी अन्धे थे। डाकू सभी सामग्री छोड़कर साहब ने सभी बच्चों को घेरे में बिठाया और स्वयं बीच में चले गये। कुछ समय पश्चात राणावास गांव से काका बैठ गये । अब आपने आचार्य भिक्ष का जाप प्रारम्भ कर साहब के मामा श्री धनराजजी आछा आये। उन्होंने सारे दिया। बड़ी तन्मयता एवं तल्लीनता के साथ लगभग घर को बिखरा हुआ देखा। वे भी घबरा गये। पर जब २ घण्टे तक आप जाप करते रहे । आपका आत्मविश्वास यह देखा कि डाकू जेवरात को ले जाने के बजाय यहीं । आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धा अनन्त थी । डाकुओं इधर-उधर बिखेर गये हैं तो उन्हें कुछ हिम्मत बँधी। का भय न मालूम कहां गायब हो चुका था। मन ही मन काका साहब के भाग्य को सराहा और सारी सामग्री एकत्रित कर ली एवं उसे सुरक्षित रख दिया। . इधर डाकू कब चूकने वाले थे। उन्होंने घर में प्रवेश थोड़ी ही देर बाद स्कूल से श्रीमती सुन्दरबाईजी एवं किया । जोर से आवाज लगाई पर उन्हें कोई उत्तर नहीं श्री सुराणाजी पधारे। उन्होंने सोचा था कि आज तो घर मिला। साध्वीजी अन्दर विराज रही थीं। जब डाकू जोर खाली हो चुका होगा । माल सब डाकू ले जा चुके होंगे। से आवाज देते रहे तो भीतर से साध्वी श्री चांदकंवरजी ने पर जब मामा साहब धनराजजी आछा ने सारी स्थिति जवाब दिया हम खालना नहा ह । उत्तर मडाकून कहा- बताई तो अपने आपको भाग्यशाली माना । काका साहब ने रंडी खोल वरना जान से मार दूंगा । साध्वी श्री चांदकंवर कहा कि यह सब आचार्य श्री भिक्षु का ही तो पुण्य प्रताप ही जी बड़ी निडर साध्वी थीं। आपने डाकू से कहा, मुंह है कि डाकू आये पर कुछ नहीं ले जा सके । सिर्फ पाँच-सात सम्भालकर बोलिए। हम साधु हैं। दरवाजा खोलना सौ का माल ले गये होंगे। शेष लगभग पेंतीस हजार रुपये हमारे नियम में नहीं है । डाकुओं को और ज्यादा क्रोध के आभूषण वहीं छोड़कर चले गए। उस समय के पैतीस आया और एक डाकू ने जोर से दरवाजे को लात मारी । हजार रुपये आज के हिसाब से पांच-सात लाख रुपये से कम दरवाजा खुल गया। प्रवेश करते ही डाकुओं ने साध्वीश्री नहीं । लगभग पांच सौ तोला सोना था और पांच हजार का सामान टटोलना प्रारम्भ कर दिया। माध्वीश्री चाँद तोला चाँदी थी। श्री सुराणाजी ने दूसरे दिन ही सारे आभूकंवरजी ने डाकुओं से कहा-इस तरह बिखेरिए मत । षणों को बाजार में बेच दिया और 'आभूषणों के विक्रय से इसमें तुम्हारे काम की कोई चीज नहीं है। यदि देखना प्राप्त सम्पूर्ण राशि श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव ही है तो हम बता देंगे। जसे ही साध्वी ने एक-एक वस्तु हितकारी संघ को प्रदान कर दी । देखिये श्री सुराणाजी का को बताना प्रारम्भ किया डाकू देख-देखकर बीच-बीच में त्याग ! कैसा था संस्था के प्रति अनुराग ! इतनी विशाल बोले-रहने दे । अच्छा बन्द कर। आगे चल आदि शब्द सम्पत्ति से एकाएक सम्बन्ध विच्छेद कर लेना कोई हँसीकहकर अन्दर के दरवाजे को खटखटाया। कोई उत्तर खेल नहीं। उसके लिए चाहिए हृदय की विशालता और अन्दर से न मिलने पर दरवाजे को फिर जोर से लात त्याग की भावना । इस त्याग के बल पर ही श्री सुराणाजी मारी । दरवाजा खुल गया। डाकू अन्दर घुस गये। अब आज जन-जन के आकर्षण के केन्द्र बन पाये हैं। धन्य है क्या था ? सारा माल, सोना-चाँदी, जेवरात, कपड़े, बर्तन इस लाड़ले सपूत को जिसने सारा घर समाज के लिए फूक एवं सब घर का सामान डाकुओं के कब्जे में था। पर धर्म दिया एवं तन, मन, धन से आज भी संस्था की सेवा में बड़ी चीज है । श्रद्धा बलवान है । आचार्य श्री भिक्षु का प्रताप यहाँ भी काम आ रहा था । डाकुओं की बुद्धि फिर गई थी। मानों उनकी बुद्धि पर पाला पड़ गया १०. चन्दा प्राप्त करने की कला था। जो भी वस्तु वे उठाते, उन्हें वह अच्छी नहीं जितने भी व्यक्ति कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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