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________________ ५३२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजो सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड .......................................................................... इसका स्नवंभू प्रमाण है। इनमें जीवन चरित्र, आख्यान, कथानक, संस्मरण, स्तुतियाँ, गण का विधान, मर्यादाएं, इतिहास, दृष्टान्त, उपदेश, व्याकरण, आगमों का प्रद्यानुवाद, दर्शन आदि-आदि अनेक विषय संग्रहीत हैं। इनमें लगभग ५० ग्रन्थ गद्य में और शेष पद्य में हैं । गद्यमय रचनाओं का विषय हैं-१.तत्त्व विवेचन, २. कथा, ३. पत्र, ४. विधान, ५. व्याकरण की साधनिका, ६. संस्मरण, ७. दृष्टान्त, ८. आगमों की टीका (टब्बा), ६. हुण्डियाँ, १०. आगमों का विषयानुक्रम-आदि-आदि। आप द्वारा लिखित गद्य साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। उसमें सबसे बड़ा गन्थ है-'कथा रत्न कोष' । इसमें लगभग दो हजार कथाएँ हैं । आपने 'भिक्खु दृष्टान्त' नाम का एक गद्य-ग्रन्थ लिखा। यह संस्मरणात्मक गद्य-साहित्य का उत्कृष्ट नमूना है। इस ग्रन्थ पर हिन्दी भाषी तथा अहिन्दी भाषी विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण अभिमत लिखे हैं। अब मैं आपके सामने उनकी राजस्थानी गद्य में लिखित रचनाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहा हूँ। (१) भ्रम विध्वंसन-वह धर्म-चर्चा का युग था। सब अपनी-अपनी मान्यता को शास्त्र-सम्मत सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे। जयाचार्य के जीवन में भी धार्मिक चर्चा के अनेक प्रसंग आए। तेरापंथ को प्रकाश में आए एक शताब्दी पूरी हो चुकी थी। उसकी मान्यताएँ बद्धमूल हो गई थी। फिर भी उनको आगमिक प्रमाणों से सिद्ध करने की परम्परा चालू थी। आपने उस समय के प्रमुख विवादास्पद विषयों को शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर विवेचित किया । उसका समग्ररूप 'भ्रम विध्वंसन' के नाम से प्रथम बार व्यवस्थित रूप में वि० सं० १९९० में गंगाशहर निवासी सेठ ईश्वरचन्दजी चोपड़ा ने, ओसवाल प्रेस, कलकत्ता से मुद्रित करवाया। इसमें २४ अधिकार हैं। इसका ग्रन्थ परिमाण १००७५ अनुष्टुप् श्लोक जितना है । जैनगमों के रहस्यों को समझने में यह अनुपम गद्य कृति है। (२) संदेह विषौषधि-इसमें जीवन व्यवहार से सम्बन्ध रखने वाले अनेक विषय चचित हैं। यह चर्चा आगमिक संन्दर्भ में की गई है। इसमें परिच्छेदों की 'रत्न' संज्ञा दी गई है। वे चौदह हैं--१. छठा गुणठाणा री ओलखाण २. संयोग, ३. ववहार, ४. आहार, ५. कल्प, ६. अन्तरघर ७. श्रावक अविरति, ८. अन्तरिक्ष, 8. ईपिथिकी क्रिया, १०. तीर्थ, ११. निरवद्य आमना, १२, तपो प्रसिद्धकरण, १३. भाव तीर्थकर, १४. सूखा धान । इसका ग्रन्थमान १७०० अनुष्टुप् पद्य परिमाण है। इसका रचनाकाल प्राप्त नहीं है। (३) जिनाज्ञा मुखमंडन-जैन मुनि-चर्या का आधार आगम हैं। उनमें उत्सर्ग और अपवाद के अनेक निर्देश प्राप्त हैं । बहुश्रुत मुनि के लिए यह आवश्यक है कि वह साधारण मेधा वाले व्यक्तियों के लिए उन अपवादों की स-प्रमाण व्याख्या करे जिससे कि प्रत्येक मुमुक्षु आपवादिक सेवन को शिथलता का आधार न मान बैठे। मूल सत्रों में कछेक अपवादों के सेवन का विधान प्राप्त है। उनके आसेवन से मुनि पाप से स्पृष्ट नहीं होता। इस ग्रन्थ में उनमें से कुछेक निर्देशों की सप्रमाण और सयुक्ति व्याख्या प्रस्तुत की गई है। वे कुछ विषय हैं (१) ज्ञान, दर्शन और चारित्र की वृद्धि के लिए नदी पार करना-नौका द्वारा या पैदल चलकर भी। (२) रात्रि में देहचिन्ता से निवृत्त होने के लिए खुले आकाश (राज. अछायां) में जाना। (३) पानी में डूबती हुई साध्वी को साधु द्वारा हाथ पकड़कर निकालना । (४) पाट-बाजोट आदि में से खटमल आदि निकालना; आदि-आदि : इसका ग्रन्थमान १३७८ है । इस ग्रंथ की पूर्ति वि० सं० १९६५ ज्येष्ठ कृष्णा सोमवती अमावस्या को हई। (४) कुमति विहंडन-यह भी तात्त्विक ग्रन्थ है। इसमें मुख्यत: मुनि के आचार-विचार से सम्बन्धित कुछेक -- समस्त ग्रन्थों के संक्षिप्त परिचय के लिए देखें--मुनि मधुकर द्वारा लिखित 'जयाचार्य की कृतियाँ : एक परिचय' (वि०सं० २०२१ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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